नई दिल्ली. ब्यात के वक्त पशुओं का कई तरह से ख्याल रखना जरूरी होता है. अगर सही से देखरेख न की जाए तो पशुओं को बीमारियां घेर सकती हैं. बीमारी लगने का मतलब ये है कि पशु उत्पादन नहीं करेगा और फिर पशुपालक को नुकसान उठाना पड़ेगा. वहीं अगर पशु की बीमारी की वजह से कहीं मौत हो गई तो एक झटके में लाख रुपये से ज्यादा का भी नुकसान हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि पशुओं का ठीक ढंग से ख्याल रखा जाए. आइए जानते हैं पांच कारणों के बारे में.
पशु को समूह से अलग करना- जब पशु की प्रसव किया में कुछ दिन ही बाकी हो तो पशु के साथ रहने से चोट लगने या लड़ने का डर रहता है तथा संक्रमित गर्भपात हो तो अन्य पशुओं में फैलने का डर रहता है. इसलिए पशु को अलग कमरे या बाड़े (प्रसव कक्ष) में रखे क्योंकि ऐसे समय पशु अकेले रहना पसन्द करता है.
प्रसव कक्ष का प्रबंध कैसे करें
प्रसव कक्ष में गदंगी नहीं होनी चाहिए इसके लिए प्रसव कक्ष की निचली सतह को समतल रखें, साफ रखें एवं पशु एवं नवजात पशु को बीमारियों से रोकथाम हेतु कक्ष को 10 प्रतिशत फिनायल के घोल अथवा बुझे हुए चूने से बैक्टीरिया रहित कर लें. क्योंकि कभी-कभी पशु खड़ी अवस्था में भी बच्चा दे देता हैं. इसलिए नवजात को ऊपर से गिरने पर चोट भी लग सकती है इसके लिए बिछावन के रुप में गेंहू का भूसा धन का पुआल एवं अन्य सूखा, मुलायम एवं साफ बिछावन की 10 से 15 से0 मी० तह बिछा देनी चाहिए इससे सर्दीयों में कक्ष में गर्मी भी रहती है तथा बिछावन आरामदायक भी रहता है.
कैसे कराया जाए प्रसव
प्रसव एक प्राकृतिक क्रिया है. यदि प्रसव सामान्य है तो प्रसव काल 3-4 घंटे का होता है जिसमें पशु बच्चा दे देता हैं पशु को बच्चा देने के तुरन्त बाद नवजात की नाक, मुंह और कान साफ कर दें. फिर साफ एवं स्वच्छ कपड़े से नवजात के पूरे शरीर को पोंछकर सुखा दें और नवजात को पशु को चाटने दें. ताकि इससे न केवल सुखाने में मदद मिलेगी बल्कि बच्चे में संचार बढ़ता है और बच्चे में स्फूर्ति आती है. इसके बाद नाभि नाल को 5 सेमी शरीर से छोड़ कर साफ केंची से काट दें तथा उस पर टिन्चर आयोजित लगा दें. सर्दी के मौसम में नवजात एवं पशु को सर्दी से बचाव का पूरा इन्तजाम करें.
प्रसव उपरान्त जेर का डालना
प्रसव के बाद लगभग 5-6 घंटे के अन्दर पशु जेर डाल देता है. यह पशु की सामान्य प्रसव किया और दशा पर निर्भर करता है अन्यथा यह समय 8 घंटे भी हो सकता है. यदि पशु 8 घंटे तक जेर न डाले तो यह स्थिति जेर के रुकने की हो सकती है इसके लिए निम्न उपाय करें. गुड़ 750 ग्राम, अजवाइन 60 ग्राम सोंठ 15 ग्राम, मेथी 15 ग्राम को 1 लीटर पानी में मिलाकर दें यदि 1 बार देने पर पशु जेर न डाले तो दोबारा दें. बांस की हरी पत्ती को उबाल कर उसका काढ़ा भी दिया जाता यदि ये उपचार भी कारगर न हो तो पशु चिकित्सक की सहायता से हाथ द्वारा जेर को गर्भाशय से बाहर निकाला जा सकता है. ध्यान दें कि जेर को पशु से तुरन्त दूर कर दें पशु जेर को चाटने या खाने न पाये एवं जेर को दूर गड्ढे में दबा देना चाहिए.
प्रसव काल में पशु का दुग्ध ज्वर से बचाव
दुग्ध ज्वर ज्यादातर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में होता है. पहली बार बच्चा देने से पहले पशु को दूध नहीं निकालना चाहिए चूकि अयन, नर्व फाइबर्स में तथा जनन अंगो में गहरा रिश्ता होता है. जिससे बच्चा देने की प्रकिया में कई घंटे की देरी हो सकती है. इसके लिए पशु आहार में शूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी या खनिज तत्वों की कमी में पूरा करना चाहिए. जिसके लिए आहार में हड़ी का चूर्ण या खनिज लवण सामिल करना चाहिए. इसके साथ विटामिन ‘डी’ की मात्रा को आहार में बढ़ा देना चाहिए.
Leave a comment