नई दिल्ली. भारत में बॉयलर मुर्गियों के उद्योग ने दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की की है. भारत का 54 साल का रिकॉर्ड कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है. साल 1970 से 2022 तक दर्ज किए गए रिकॉर्ड के मुताबिक भारत में मुर्गा खाने वालों की तादाद में जबरदस्त इजाफा हुआ है. 1970 में जहां भारत में चार मिलियन मुर्गों की खपत थी, तो वहीं साल 2022 तक यह बढ़कर 500 मुर्गो तक आ गई है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस गति से से मुर्गों की डिमांड भारत में बढ़ी है.
हर दस साल के रिकॉर्ड पर गौर किया जाए तो 1970 में 4 मिलियन, 1980 में 30 मिलियन, 1990 में 200 मिलियन, 2000 में 800 मिलियन, 2010 में 2600 मिलियन, 2020 में 3960 मिलियन और 2022 में 4800 मिलियन तक यह आंकड़ा पहुंच गया है. एक्सपर्ट का कहना है कि यह आंकड़ा दिन-ब-दिन और ज्यादा बढ़ेगा. हो सकता है कि 2030 तक यह आंकड़ा 1000 मिलियन के आसपास पहुंच जाए.
भारतीय ब्रायलर उद्योग
एक्सपर्ट कहते हैं कि भारतीय पोल्ट्री उद्योग भारत में सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है. भारत में ब्रायलर का उत्पादन 8-10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है. भारत ब्रायलर का अठारहवीं सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत में वार्षिक प्रति व्यक्ति खपत केवल 42 अंडे और 1.6 किलोग्राम मुर्गी के मांस की है, जो पोषण सलाहकार समिति द्वारा 180 अंडे और 11 किलो मुर्गी के मांस के अनुशंसित स्तर से कम है. मटन की ज्यादा कीमतें, गौमांस और सूअर के मांस पर धार्मिक प्रतिबंध, और तटीय क्षेत्रों के बाहर मछली की सीमित उपलब्धता ने चिकन को भारत में सबसे पसंदीदा और सबसे अधिक खपत मांस बनाने में मदद की है. घरेलू उत्पादन के विस्तार और बढ़ते एकीकरण ने पोल्ट्री अर्थात मुर्गी के मांस की कीमतों को कम किया है और इसकी खपत को बढ़ाया है.
प्रोटीन के लिए जरूरी है मीट
मांस शरीर के अच्छे विकास के लिए आवश्यक प्रथिनों का प्रमुख स्रोत है. शरीर मे उत्पन्न विविध संप्रेरको (Hormones) और एनजाइंम्स का कार्य सुचारु रुप से चलने के लिए, रोग प्रतिरोधक क्षमता तैयार होने मे और शरीर की मांस पेशियां और हड्डियां मजबूत होने मे प्रोटीन खाने मे होना जरुरी हैं. प्रेटीन्स द्वारा हमे रोज का शक्तिशाली काम करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है. इस वजह से खिलाड़ी, बॉडी बिल्डर्स और जादा मेहनत करने वाले लोग मांस का सेवन नियमित रुप से करते हैं. मांस में मौजूद मायोग्लोबिन नामक प्रोटीन्स के मात्रानुसार लाल मांस और सफेद मांस ये प्रकार जाने जाते हैं. जैसे की भैंस या भेड़ या बकरी के मांस मे मायोग्लोबिन की मात्रा ज्यादा होती है.
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