नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश के पशुधन सुधार अधिनियम 1964 प्रदेश में पशुधन के सुधार की व्यवस्था के मकसद से ये व्यवस्था बनाई गई है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा सांड नहीं पालेगा जिसकी अमुमति नहीं ली गई हो. इसके लिए पशुधन अधिकारी से इजाजत लेनी होगी. पशुधन अधिकारी लिखित में सांड पालने की इजाजत देता है. हालांकि उससे पहले निरीक्षण के लिये सांड को पेश करने की निर्देश दिया जाता है. फिर जिस व्यक्ति को सांड पालना है उसे निरीक्षण के लिये तय तारीख, समय और स्थान बताना होता है. बशर्ते निरीक्षण उसी गांव अथवा नगर में होता है, जहां पर सांड पालने वाला व्यक्ति रहता है.
इस प्रकार यदि सांड निरीक्षण करने पर पशुधन अधिकारी का यह लग जाए कि सांड किसी भी काम में लाये जाने योग्य है और उसके अंदर कोई कमी नहीं है. सांड किसी भी छूत की या संक्रमण रोग से या किसी ऐसे अन्य रोग से पीड़ित नहीं है. जिससे कि सांड रीप्रोडक्शन के काम में जनन प्रयोजन के लिए अयोग्य हो जाता है. उस क्षेत्र के लिये अनपयुक्त घोषित न किया गया हो तो वह उस सांड को अप्रूव सांड के रूप में प्रमाणित किया जाता है. इसके बाद सांड पर एक निशान लगाया जाता है.
खुद ही करना होगा बधिया
वहीं निरीक्षण करने पर पशुधन अधिकारी का यह मालूम हो जाय कि कोई सांड प्रमाणित किये जाने या दागे जाने में उपयुक्त नहीं है तो वह लिखित में सांड पालने वाले व्यक्ति को बताएगा कि सांड को ऐसी अवधि में बधिया करा लें, बधिया करने का कार्य पशुधन अधिकारी को खुद करना होगा. या फिर अपने सामने करवाना होगा. जब तक सांड का मालिक या उसको पालने वाला अन्य व्यक्ति इजाजत का पालन करने के लिए स्वयं की इच्छा प्रकट न करें, इस अधिनियम के अन्तर्गत पशुधन अधिकारी ऐसे रजिस्टरों को रखेगा या रखवायेगा जिनमें सांडों के निरीक्षण, बधिया किये जाने, प्रमाणीकरण और दागे जाने के विवरण तथा अन्य सूचनायें दी जायेगी.
जुर्माना या फिर हो सकती है जेल
इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति बिना वैलिड अधिकारी के इस अधिनियम के अधीन नियत किसी चिन्ह से अथवा नियत निशान सांड पर लगवाता है तो इसे गैरकानूनी माना जाएगा. वहीं इसमें सजा का भी प्रावधान है. धोखा देकर किसी सांड को दागा जाए दगवाया जाए तो उसे 3 माह का कारावास या 500 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है लेकिन इस अधिनियम के अन्तर्गत अपराधों का संज्ञान तभी लिया जा सकता है जबकि पशुधन अधिकारी या उसके द्वारा मुकर्रर किए गए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा परिवाद प्रस्तुत न किया जाये. तब तक कोई न्यायालय इस अधिनियम के अन्तर्गत कोई कार्रवाई नहीं कर सकता.
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