नई दिल्ली. योगी सरकार की मंशा है कि गोआश्रय केंद्र अपने सह उत्पाद (गोबर, गोमूत्र) के जरिये आत्मनिर्भर बनें. यही वजह है कि सरकार छुट्टा गोवंश के संरक्षण का हर संभव प्रयास कर रही है. हाल ही में महाकुंभ के दौरान इस विषय पर पशुधन और दुग्ध विकास मंत्रालय ने भी गहन चर्चा की है. साथ ही इस बाबत रणनीति भी बनाईं है. उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में 7700 से अधिक गोआश्रय केंद्रों में करीब 12.5 लाख निराश्रित गोवंश रखे गए हैं. इसके अलावा मुख्यमंत्री सहभागिता योजना के तहत करीब 1 लाख लाभार्थियों को 1.62 लाख निराश्रित गोवंश दिए गए हैं.
योजना के तहत हर लाभार्थी को प्रति माह 1500 रुपये भी दिए जाते हैं. सीएम योगी की मंशा के अनुसार गोआश्रय केंद्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए संबन्धित विभाग कृषि विभाग से मिलकर सभी जगहों पर वहां की क्षमता के अनुसार वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाएगा. गोबर और गोमूत्र को प्रसंस्कृत करने के लिए उचित तकनीक की जानकारी देने के बाबत इन केंद्रों और अन्य लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा.
सुधरेगी जन, जल और जमीन की सेहत
दरअसल जन, जमीन और जल की सेहत योगी सरकार के लिए प्राथमिकता है. इसका प्रभावी हल है प्राकृतिक खेती. ऐसी खेती जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से मुक्त हो. गोवंश इस खेती का आधार बन सकते हैं. उनके गोबर और मूत्र को प्रोसेसिंग कर खाद और कीटनाशक के रूप में प्रयोग से ही ऐसा संभव है. इससे पशुपालकों को दोहरा लाभ होगा. खुद और परिवार की सेहत के लिए दूध तो मिलेगा ही जमीन की सेहत के लिए खाद और कीटनाशक भी मिलेगा. इनके उत्पादन से गोआश्रय भी क्रमशः स्वावलंबी हो जाएंगे.
प्राकृतिक खेती का हब बनाने की पहल
उत्तर प्रदेश, देश में प्राकृतिक खेती का हब बने. इसके लिए मुख्यमंत्री हर मुमकिन मंच से इसकी पुरजोर पैरवी करते हैं. वह किसानों को भारतीय कृषि की इस परंपरागत कृषि पद्धति को तकनीक से जोड़कर और समृद्ध करने की बात भी करते हैं. इसके लिए उनकी सरकार किसानों को कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है. गंगा के तटवर्ती गांवों और बुंदेलखंड में प्राकृतिक खेती पर सरकार का खासा जोर है. अब तो इसमें स्थानीय नदियों को भी शामिल कर लिया गया है.
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