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Fish Farming: मछलियों में फंगल डिसीज क्या है, किस तरह का पड़ता है इससे मछली पालन पर असर

fish farming in pond
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. हुम्युडिटी के बढ़ने पर मछलियों में फंगल डिसीज का खतरा भी बढ़ जाता है. फंगल डिसीज होने के कारण मछलियों पर कई बुरा असर पड़ता है. एक्सपर्ट का मानना है कि फंगल डिसीज खासतौर पर बारिश के मौसम की शुरुआत होते ही अपना असर दिखाना शुरू कर देती है. इससे वातावरण में फफूंद के बैक्टीरिया फैलने लगते हैं. मछली के अंडे, स्पान तथा मछलियों के बच्चों पर असर डालते हैं. यही नहीं धायल बड़ी मछलियां फफूंद से जल्दी संक्रमित हो जाती हैं.

फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि वास्तव में फफूंद सेकेंड्री पैथोजन है जो अनुकूल मौसम में शरीर के धायल अंगों पर जगह पाकर फलते-फूलते हैं. कुल मिलाकर कहा जाए तो इससे मछलियों की ग्रोथ और प्रोडक्शन पर असर पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि इस बीमारी का इलाज समय रहते किया जाए. फंगल डिसीज में मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है. सेप्रोलिग्नीयोसिस और ब्रेकियोमाइसिस के तौर पर. आइए इन दोनों बीमारियों के लखण और इलाज के बारे में जानते हैं.

सेप्रोलिग्नीयोसिस-
फिश एक्सपर्ट के मुताबिक सेप्रोलिग्नीयोसिस पैरालिसिका नामक फफूंद से होता है. ये अक्सर जाल चलाने तथा परिवहन के दोरान मत्स्य बीज के धायल हो जाने की वजह से मछलियों के शरीर पर अपनी जगह बना लेता है. फफूंद धायल शरीर पर चिपक कर फैलने लगता है तथा त्वचा पर सफेद जालीदार सतह बनाता है. यह सबसे धातक रोग है. इसके हो जाने से मछलियों की मौत भी होने लग जाती है.

लक्षण क्या हैं

  1. जबडें फूल जाते हैं अंधापन आने लगता है.
  2. पैक्टोरलफिन एवं काँडलफिन के जोड़ पर खून जमा हो जाता है.
  3. रोगग्रस्त भाग पर रूई के समान गुच्छे उभर आते है.
  4. मछली कमजोर तथा सुस्त हो जाती है.

उपचार इस तरह करें
3 प्रतिशत नमक का घोल या 1:1000 भाग पोटाश के घोल या 1:2000 कैलिश्यम सल्फेट के घोल में 5 मिनट तक डुबोने तथा इस रोग के समाप्त होने तक दोहराने से फायदा होता है.

ब्रेकियोमाइसिस बीमारी

इसका हमला सबसे ज्यादा गलफड़ो पर होता है. जिससे गलफड़े रंगहीन हो जाते हैं जो कुछ समय के बाद ये सड़-गल कर गिर जाते हैं. इसके चलते भी मछलियों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ जाता है.

कैसे करें इसका उपचार

  1. 250 पी.पी.एम. का फार्मिलिन धोल बनाकर मछली को स्नान कराएं.
  2. 3 प्रतिशत सामान्य नमक के घोल में मछली को विषेषकर गलफड़ो को धोना चाहिए. इससे मदलियों को बहुत फायदा मिलेगा.
  3. जल का 1-2 पी.पी.एम. कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) से उपचार करना चाहिए.
  4. पोखर में 15-25 पी.पी.एम. की दर से फार्मिलिन डालें.

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