Home पशुपालन Disease: इस बीमारी में पशु हो जाते हैं बेहोश, कई और भी लक्षण दिखाई देते हैं, यहां पढ़ें ऐसा होने पर क्या करें
पशुपालन

Disease: इस बीमारी में पशु हो जाते हैं बेहोश, कई और भी लक्षण दिखाई देते हैं, यहां पढ़ें ऐसा होने पर क्या करें

livestock
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशुपालन में पशुओं को बीमारियों का बहुत खतरा रहता है. कई ऐसी बीमारियां हैं जो पशुओं के उत्पादन पर असर डालती ही हैं. जबकि कई बीमारियों में पशुओं की सेहत खराब हो जाती है और उनकी मौत भी हो जाती है. इसलिए डेयरी व्यवसाय में हमेशा ही इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि पशुओं की पशुओं को किसी भी स्थिति में बीमार नहीं होने देना है. अगर पशु बीमार हो जाएंगे तो फिर डेयरी व्यवसाय में इसका नुकसान झेलना पड़ेगा. इसलिए जरूरी है कि उन्हें बीमार होने से बचाया जाए. यहां हम पशुओं में होने वाली हाइपोकैल्शिमिया यानि दुग्ध ज्वर के बोर में बताने जा रहे हैं.

हाइपोकैल्शिमिया यानि दुग्ध ज्वर बीमारी पशुओं के खून में कैल्शियम की मात्रा कम होने की वजह से होती है. एक्सपर्ट इसे बुखार नहीं कहते हैं. इस रोग की वजह से प्रसव के दौरान कई दिक्कतें होती हैं. प्रसव होने में मुश्किलें आती हैं. जेर का नहीं गिरना और गर्भाशय भ्रंश (युटेराइन प्रोलैप्स) हो सकता है. एक्सपर्ट के मुताबिक ये प्रसव के 72 घंटे के अंदर पाया जाता है कि शुरूआती चरणों में कोख एवं लॉयन के ऊपर उत्तेजना के साथ हल्के झटके दिखते हैं. कान झुक जाते हैं और सिर को हिलाने जैसे लक्षण पाए जाते हैं.

जाानें और क्या हैं बीमारी के लक्षण
एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक ब्याने के 48 घंटों के दौरान पूरा दूध निकालना, दुग्ध ज्वर को बढ़ावा देता है. पशु खड़ा होने में असमर्थ होता है और बाद की अवस्था में सुस्त हो जाता है. जिसमें पहले वो अपना सिर एक तरफ मोड़ लेता है और बाद में आगे की ओर खींचकर भूमि पर रख देता है. आंखों की प्रतिक्रिया खत्म हो जाती है. वहीं आखिरी क्षण में तापमान सामान्य से कम होने के साथ पशु बेहोशी की हालत में चला जाता है. हाइपोकैल्शिमिया (दुग्ध ज्वर), सब क्लीनिकल रूप में भी पाया जाता है, जिससे पशुओं में बुखार, गर्भाशय में सूजन (मेट्राइटिस), और शर्करा की कमी (कीटोसिस) होने की संभावना बढ़ जाती है जो कि नुकसान का एक बड़ा कारण हो सकता है.

बीमारी को रोकने के लिए करें ये काम
गर्भावस्था के आखिरी काल में कैल्शियम की खुराक ज्यादा नहीं देनी चाहिए. दुग्ध ज्वर संभावित पशु में ब्याने के 12-24 घंटे पहले से ब्याने के 48 घंटे तक कैल्शियम की 3-4 खुराक (40-50) ग्राम प्रति खुराक देने से बीमारी का खतरा कम हो जाता है. ब्याने के 3 सप्ताह पहले निगेटिव सॉल्ट जैसे कि अमोनियम क्लोराइड एवं मैग्नेशियम सल्फेट या अमोनियम सल्फेट (50- 100 ग्राम प्रतिदिन) खिलाना चाहिए. लक्षण दिखाई देने पर पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें जिसके बाद उपचार से पशु ठीक हो सकता है. यदि कोई उपचार न किया जाए, तो पशु मर भी सकता है. कुछ पशुओं में 24-48 घंटे के भीतर पुनः उपचार करने की आवश्यकता होती है. प्रजनन के समय पशु के पेशाब का पीएच. 6.5-7.0 के बीच होता है, पीएच ज्यादा बढ़ने पर दुग्ध ज्वर होने की संभावना बढ़ जाती है.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

langda bukhar kya hota hai
पशुपालन

Animal News: PAU की एडवाइजरी के मुताबिक पशुओं को ठंड से बचाने के लिए ये काम करें पशुपालक

आमतौर पर पशुओं की देखभाल कैसे करना है और किस मौसम में...

livestock animal news
पशुपालन

Animal Husbandry: क्या पशुओं को दे सकते हैं वनस्पति घी, देने का सही तरीका और फायदा, जानें यहां

उसे पेट से संबंधित से कोई प्रॉब्लम नहीं है तो इसका मतलब...

Animal husbandry, heat, temperature, severe heat, cow shed, UP government, ponds, dried up ponds,
पशुपालन

Animal Husbandry: पशु को शरीर के अंदर और बाहर रहने वाले कीड़ों से होता है नुकसान, जानें इसका इलाज

आं​तरिक परजीवी डेयरी जानवरों के शरीर के अंदर रहते हैं. बताते चलें...