नई दिल्ली. पशुपालन में चाहे जिस भी मवेशी को पालें, हमेशा ही उसकी अच्छे ढंग से देखभाल की जानी चाहिए. ताकि पशु बीमार न हों. अगर बात बकरियों की जाए तो ये जल्दी से बीमार हो जाती है. इसलिए बीमारियों से बचाव कैसे किया जाए, हर बकरी पालक को पता होना चाहिए. आमतौर पर यह देखा गया है कि बकरी समूह में रोग नियंत्रण के लिए शुरुआती उपाय व नियमित देख-रेख स्वास्थ्य-प्रबन्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर पशुओं की ठीक ढंग से केयर की जाए तो वो बीमार होने से बच जाएंगे. अच्छे ढंग से देखरेख करने से बीमारियों को आने से रोका जा सकता है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि बकरी पालन की शुरुआत हमेशा स्वस्थ पशुओं से करना चाहिए. खरीद के समय प्रत्येक पशु का बीमारियों के विशेष लक्षण, अपसामान्यतः या त्रुटि सम्बन्धित कठिनतम परीक्षण किया जाना आवश्यक है. सामान्यतः इन्हें किसी परिचित व विश्वसनीय पैतृक स्रोत से खरीदना चाहिए.
- खरीद के तुरन्त बाद लगभग एक माह तक रेबड़ की अन्य बकरियों से इन्हें अलग जगह पर रखना रोग नियंत्रण व बचाव में अहम् भूमिका निभाता है. परजीवी व रोगों के नियंत्रण के लिए अलग जगह पर इनका कृमिहरण, जूं हरण व टीकाकरण करना चाहिए. हमारे देश में अधिकांश बकरियां वाइड प्रणाली में पाली जाती हैं. इसलए यह कार्यक्रम चलाना जरूरी है.
- बकरियों को हर कंडीशन में पर्याप्त आहार देना चाहिए. क्योंकि बकरियों में संक्रमण व परजीवियों के लिये प्रतिरोध क्षमता होती है. संपूरक विटामिन व खनिज बकरियों को रातब के माध्यम से देते रहना चाहिए. यह ध्यान देने योग्य बात है कि अपने क्षेत्र में खनिज लवणों की कमी के अनुसार, क्षेत्र विशेष के लिए उपलब्ध खनिज मिश्रण ही बकरियों को देना चाहिये. उपलब्ध खनिज मिश्रण जैसे लाइकामिन, कैलमिन (फोर्ट), शक्तिमिन, मिनटक इत्यादि रोजाना 5-10 ग्राम देना चाहिये.
- उपयुक्त बाड़े में आरामदायक वातावरण देकर बकरियों को पारिस्थितिक प्रतिबल से मुक्त रखा जा सकता है. गहन पद्धति में पाली जाने वाली बकरियों के बाड़े तथा आहार व पानी के बर्तनों को नियमित सफाई आवश्यक है, ताकि बाड़े व बर्तनों में रोगजनक परजीवी व कीट न पनप सकें.
- अनप्रोडक्टिव बकरियों को रेबड़ से छांटकर अलग करके उनके स्थान पर परीक्षित अच्छे प्रजनक पशुओं को रखना बेहद की फायदेमंद है.
- आन्तरिक परजीवियों के लिये निरन्तर मल परीक्षण आवश्यक है ताकि संक्रमण की आपतन दर व तेजी का समय से पता चल सके. इससे उचित प्रभावी चिकित्सा में सहायता मिलती है. जिन क्षेत्रों में अत्यधिक आन्तरिक परजीवी आपतन दर होती है, वहीं प्रतिकृमियों का डीवार्मिंग कम बरसात से पहले व बरसात के बाद करना चाहिये.
- बाहरी रूप से बकरियों में किसी रोग लक्षण का अनुभव करते ही बीमार पशु को रेबड़ से अलग कर पशु चिकित्सक की सहायता प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए. इसके साथ ही बाड़े व पशु उपयोग के बर्तनों की सफाई व विसंक्रमण सम्बन्धित गतिविधियों को और गहन कर देना चाहिए.
- बकरियों को अन्य पशुओं जैसे गाय, भेड़ आदि से अलग कर देना चाहिए. इससे पशुओं में विभिन्न रोगों व परजीवियों का अन्तः संचरण नहीं होता.
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