नई दिल्ली. ये बात तो हम सभी ही जानते हैं कि ग्रामीण परिवेश में लगभग 80 प्रतिशत से भी अधिक पशुपालक स्वयं रहने के स्थान के निकट ही पशुओं को रखना पसंद करते हैं. ताकि पशुओं की देखभाल आसानी से की जा सके. पशुओं के रखने की जगह पशुओं की संख्या तथा खेती बाड़ी के स्तर पर निर्भर करता है. कृषि एवं जलवायु के क्षेत्रों के अनुरूप स्थान की आवश्यकता, निर्माण का स्वरूप, छत का प्रकार आदि के सम्बन्ध में वैज्ञानिक जानकारी का अभाव इस दिशा में निश्चित तौर पर पॉलिसी फॉर्मूलेशन को रोकने वाला साबित होता है.
डेयरी पशुओं में खुली आवास व्यवस्था उचित मानी गई है. इसके तहत पशुओं को खुले क्षेत्र में रखा जाता है. इसमें थोड़ा स्थान ढका हुआ आश्रय स्थल भी होता है, जिससे आवश्यकता पड़ने पर पशु अन्दर भी जा सके. हालाकि मुक्त एवं परम्परागत आवास व्यवस्था, दोनों ही पक्षघरों के अलग-अलग मत हैं आइए इसके बारे में डिटेल से जानते हैं.
खुल बाड़े का क्या है फायदा
मुक्त व्यवस्था के मुताबिक पशु को घूमने फिरने, चारा, पानी, आश्रय आदि की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है. ज्यादा संख्या में पशुओं का प्रबन्धन आसान होता है. पशु को गर्मी में आने के लक्षणों की जांच आसानी से की जा सकती है. आवास निर्माण में कम लागत आती है. चारा खिलाने तथा उणुओं की देखभाल के लिए श्रम लागत भी कम लगती है. इसके साथ ही ट्रेडिशनल आवास व्यवस्था को उचित मानने वालों की दृष्टि में मुक्त व्यवस्था में हर पशु का ध्यान रखना मुश्किल होता है. पशुओं की सीग रहित रखना बेहद ही जरूरी होता है. ज्यादा सर्दी के मौसम में बचाव हेतु विशेष प्रबन्ध की आवश्यकता होती हैं. ये बातें इस व्यवस्था की कमी को स्पष्ट करती हैं. इसके बावजूद पशु को अत्यधिक गर्मी से बचाव तथा हवादार आवास की पूर्ति हेतु खुले आवास को ही उचित माना गया है.
ताकि ठंड और गर्म हवा से बचाया जा सके
पशु आवास पशुओं के लिए आरामदायक हो तथा उनके खान-पान एवं दूध निकालने की समुचित व्यवस्था हो. आवास हवादार हो और इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि गर्मी तथा सर्दी में तेज हवा पशु को न लगे. आस पास के क्षेत्रों की तुलना में आवास ऊंचे स्थान पर होना चाहिए ताकि उसके आस-पास पानी इकट्ठा न हो, साथ ही गोबर एवं गोमूत्र का निकास भी आसानी से हो सके एवं पशु स्वास्थ्य हेतु पूर्ण स्वच्छता रखी जा सके. आवास निर्माण की सामग्री आसानी से उपलब्ध हो ताकि आवास कम लागत में बन सके तथा रख रखाव पर भी अधिक खर्च न हो. आवास में समुचित हवा तथा रोशनी का प्रबंध हो.
साफ पानी की होनी चाहिए व्यवस्था
पशुओं की देखभाल आदि में श्रम का प्रयोग कम से कम हो. वहीं आवास में सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए, हफ्ते में एक बार फिनाएल आदि से फर्श की धुलाई तथा दीवारों की सफाई भी नियमित रूप से हो ताकि परजीवी एवं जीवाणु जनित संक्रमण से पशुओं का बचाव हो सके. साफ पानी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. चोरी तथा अन्य जानवरों से दुर्घटना का भय न हो. पशुओं को इस प्रकार रखा जाना चाहिए कि आस पास की फसलों का नुकसान न हो.
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