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Meat: थाली में क्यों शामिल करना चाहिए मछली, पढ़ें इसको खाने के फायदे

rohu fish
रोहू मछली की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. भारत की मौजूदा वक्त में जनसंख्या 1 अरब 40 करोड़ के पार जा पहुंची है. संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार विश्वभर में कुपोषण से प्रभावित कुल जनसंख्या का लगभग एक चौथाई भाग भारत में ही है. आंकड़ों के मुताबिक पूर्वोत्तर राज्यों, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दक्षिणी राजस्थान, आंध्र प्रदेश का रायलसीमा क्षेत्र, अंडमान-निकोबार, दादर-नागर हवेली, सभी कुपोषण से विशेष रुप से प्रभावित क्षेत्र हैं. इसमें भी खासकर 6 वर्ष से कम उम्र वर्ग के बच्चे, मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग, जनजातीय जनसंख्या, अनुसूचित जनजाति, कृषक, मजदूर, गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले और गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं.

अब बड़ा सवाल ये है कि अगर कुपोषण से प्रभावित लोगों की इतनी बड़ी जनसंख्या अकेले देश में ही तो इससे निपटने के उपाय क्या हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि लोगों को अगर मछली के सेवन के प्रति जागरुक किया जाए और कुपोषित लोगों की थाली में मछली भोजन के तौर पर सुनिश्चित की जाए तो इससे फायदा होगा. हालांकि कुपोषण की इस विकराल होती समस्या के समाधान में कृषि वैज्ञानिक लगे हैं और प्रोटीन के बेहतर स्रोतों की उपज वाली फसलों की नयी प्रजातियों को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है. पशुपालन और डेयरी के क्षेत्र में भी संकर प्रजातियों ने श्वेत क्रान्ति का जहां आगाज कर दिया है. वहीं फिशरी साइंटिस्ट भी नीली क्रान्ति को लोगों तक पहुंचाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

मछली में पाएं जाते हैं ये गुण
बताते चलें कि मछलियों की संरचना में लगभग 70 से 80 प्रतिशत पानी, 13 से 22 प्रतिशत प्रोटीन, 1 से 3.5 प्रतिशत खनिज पदार्थ एवं 0.5 से 2.0 प्रतिशत चर्बी पायी जाती है. इसमें कैल्शियम, पोटैशियम, फास्फोरस, लोहा, सल्फर, मैग्नीशियम, तांबा, जस्ता, मैग्नीज, आयोडीन आदि खनिज पदार्थ मछलियों में उपलब्ध होते हैं. जिसके चलते मछली को काफी पौष्टिक माना गया है. इनके अतिरिक्त राइबोफ्लोविन, नियासिन, पेन्टोथेनिक एसिड, बायोटीन, थाइमिन, विटामिन बी12, बी 6 आदि भी मछली में पाये जाते हैं जो कि स्वास्थ्य और निरोगी काया के लिए काफी लाभकारी हैं.

15 फीसदी मछली का होता है इस्तेमाल
विश्व के सभी देशों में मछली के विभिन्न प्रकार के व्यंजन प्रचलित हैं. साफ है कि मछली में वसा बहुत कम पायी जाती है व इसमें तुरंत पचने वाला प्रोटीन होता है. पूरे विश्व में लगभग 20,000 मत्स्य प्रजातियां हैं. भारत वर्ष में 2200 प्रजातियां पाये जाने की जानकारी है. एक आंकड़े के मुताबिक विश्व के 4.5 अरब से अधिक लोगों के भोजन में उत्कृष्ट पशु प्रोटीन का प्रति व्यक्ति औसतन 15 फीसदी हिस्सा मछली प्रदान करती है. मछली का यूनीक पोषण संबंधी गुण इसे विकसित और विकासशील दोनों देशों में अरबों उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक बनाता है. मछली उच्च गुणवत्ता वाले भोजन में फ़ीड के सबसे कुशल कन्वर्टर्स में से एक है और इसकी कार्बन फुटप्रिंट अन्य पशु उत्पादन प्रणालियों की तुलना में कम है.

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