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Animal Husbandry : पशुओं व मुर्गियों को क्यों दी जाती हैं एंटीबायोटिक दवाएं

क्या है पशुओं और मुर्गियों को एंटीबायोटिक दवाएं देने का सच. live stock animal news

नई दिल्ली. अक्सर आप सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से सुनते पढ़ते होंगे कि पशुओं को लगातार एंटीबायोटिक दवाएं दी जा रही हैं. कहा जाता है कि गाय, भैंस, बकरी, मछली और मुर्गियों को जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई जा रही हैं. जिसका असर पशुओं पर तो होता ही है, इसके साथ ही इंसान को भी ये प्रभावित करती है. जबकि अवेयरनेस को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन, वर्ल्ड AMR अवेयरनेस सप्ताह का भी आयोजन करती है. ताकि लोगों को एंटीबायोटिक को लेकर अवेयर किया जा सके. पशु पालकों को ये बताया जा सके कि पशुओं को तभी एंटीबायोटिक दवाएं दी जाएं जब बहुत ज्यादा जरूरत हो. बता दें कि 18 से 24 नवंबर तक अवेयरनेस वीक मनाया जाता है.

पोल्ट्री एसोसिएशन करता है इनकार

ये बात अक्सर चर्चा में रहती है कि मुर्गों को जल्दी बड़ा करने की कोशिश में और मुर्गियों से ज्यादा अंडे लेने के मकसद के तहत एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं. जो दवाईयां मुर्गे और मुर्गी खाते हैं उनके मीट और अंडे के जरिए इंसानों के शरीर में भी दवाएं अपना असर छोड़ती हैं. हालांकि पोल्ट्री ऐसोसिएशन ऐसी खबरों को कभी नहीं मानता और कहता है कि ऐसा करना पोल्ट्री कारोबारियों के लिए इसलिए संभव नहीं है क्योंकि ऐसा करने से मुर्गा-मुर्गी पालने का खर्च बढ़ जाएगा. ऐसा दावा किया जा रहा है कि लाइव स्टॉक एनीमल में एंटीबायोटिक दवाईयों के उपयोग का चलन बढ़ गया है. कहा जाता है कि प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सोशल मीडिया पर भी इस तरह की खबरें अक्सर सामने आती हैं. जबकि डेयरी और एनीमल हसबेंडरी (पशुपालन) मंत्रालय भी इस संबंध में एंटीबायोटिक को लेकर एडवाजरी जारी करता रहता है.

10 लाख लोगों की होती है मौत

विशेषज्ञ कहते हैं कि पशुओं और इंसानों के साथ ही एंटीबायोटिक दवाएं एंवायरमेंट के लिए भी बहुत घातक है. दरअसल, ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करने से जानवरों में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस की समस्या उत्पन्न हो जाती है. ऐसी स्थिति में किसी बीमारी को ठीक करने के लिए जो दवाएं या फिर एंटीबायोटिक दी जाती है तो वो काम नहीं करती है. वहीं कुछ बैक्टीरिया कई दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर देती है जिससे जिससे वो दवाएं असर नहीं करती हैं. ऐसी स्थिति को सुपर बग कहते हैं. सुपर बग कंडिशन से हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है.

एंटीबायोटिक को लेकर क्या क​हते हैं एक्सपर्ट

सेंट्रल एवियन रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर अशोक कुमार तिवारी ने बताया कि किसी भी तरह की रिसर्च से ये साबित नहीं हुआ है कि मुर्गे मुर्गियों को एंटीबायोटिक खिलाने से उनका वजन बढ़ाया जा सकता है, या फिर ज्यादा अंडों का उत्पादन किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि पोल्ट्री फार्म बहुत महंगा कारोबार है और मुर्गियां बहुत ही सेंसेटिव होती हैं. ऐसे में एंटीबायोटिक दवाएं देने से इसके पालन का खर्च बढ़ जाएगा. उन्होंने माना कि बहुत कम संख्या में लोग चोरी-छिपे मुर्गियों को एंटीबायोटिक दवाएं देते हैं लेकिन वो भी मुर्गियां बीमार होने के डर से. क्योंकि उन्हें ये डर सताता है कि मुर्गियों में बीमारी आ जाएगी तो उन्हें नुकसान होगा.

फेडरेशन ने सिरे से कर दिया खारिज

पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रनपाल डाहंडा ने का इस मसले को लेकर कहना है कि एंटीबायोटिक दवाएं खिलाकर ब्रॉयलर चिकन का वजन नहीं बढ़ता है. ये सिर्फ और सिर्फ अफवाह है. एंटीबायोटिक दवाएं देकर अंडे देने वाली लेयर मुर्गी से ज्यादा और अच्छे अंडे भी नहीं प्राप्त किए जा सकते हैं. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि कोई ऐसी एंटीबायोटिक दवा नहीं है जो मुर्गे का वेट बढ़ा दे. दिक्कत ये है कि लोग सोशल मीडिया पर बिना कुछ जाने इस तरह की अफवाह फैला रहे हैं. ये आधारहीन है. जबकि मुर्गियों को बीमारी से बचाने के लिए वैक्सीनेशन कराया जा सकता है. जब बीमारी होती है तो दवाएं दी जाती हैं. उन्हें शाकाहारी फीड देते हैं. अगर पोल्ट्री संचालक इतनी महंगी दवाएं देंगे तो होलसेल में चिकन का रेट 80 से 90 रुपये किलो हो जाएगा.

मंत्रालय की क्या है एडवाइजरी

वहीं केन्द्रीय मत्स्य पशुपालन और डेयरी मंत्रालय इस संबंध में कहता है कि एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल सिर्फ बीमार मुर्गी के इलाज के लिए किया जाना चाहिए. मुर्गियों को सप्लीमेंट्री फीड के साथ स्पेशल एडीटिव भी दी जानी चाहिए. प्री बायोटिक, प्रो बायोटिक, आर्गेनिक एसिड, एसेंशियल ऑयल्स और इनसूलेबल फाइबर देना चाहिए. ये भी ध्यान देना चाहिए कि मुर्गी को जरूरत का खाना और मौसम के हिसाब से बचाने का उपाय किया गया है कि नहीं. हर दिन पोल्ट्री फार्म पर नजर रखनी चाहिए. मुर्गियों की हेल्थ चेक करते रहना चाहिए. उनके व्यवहार में कोई बदलाव आ रहा नहीं इसपर ध्यान देना चाहिए. बायो सिक्योरिटी का पालन अच्छे किया जाए. बीमारी को रोकने और उसे फैलने से रोकने के लिए फार्म में धूप अच्छे से आए इसकी व्यवस्था होनी चाहिए. हवा के लिए वेंटीलेशन भी अच्छा होना चाहिए.

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