नई दिल्ली. भेड़-बकरी पालन बेहतरीन व्यवसाय बन गया है. भेड़ के जरिए ऊन, दूध और मीट से कमाई की जाती है. जबकि बकरी का मीट और दूध बेचकर पशुपालक मुनाफा कमाते हैं. वहीं बकरी का दूध इतना पौष्टिक होता है कि इसकी डिमांड खूब रहती है. जबकि इसमें पाए जाने वाले औषद्यीय गुणों की वजह से इसकी मांग खूब रहती है. बकरी का दूध 200 रुपये लीटर से 400 रुपये लीटर तक बिक जाता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि पहले कहा जाता था कि बकरी गरीबों की गाय है लेकिन अब ये गरीबों को अमीर बना सकती है.
एक्सपर्ट के मुताबिक भेड-बकरी हो या कोई अन्य जानवर जब मौसम बदलता है तो उन्हें बीमारियों का खतरा रहता है. बीमारियों की वजह से पशुओं की मौत होती है और इसका नुकसान बकरी पालकों को उठाना पड़ता है. हालांकि कुछ सावधानी बरती जाए तो पशुओं को बीमारियों से बचाया जा सकता है. आइए इसी के बारे में यहां जानते हैं.
भेड़ और बकरी को टीकाकरण का फायदा हो. इसके लिए 7-14 दिन पहले परजीवी यानि कीड़ों को खत्म करने वाली दवा को जरूर पिला देना चाहिए.
इस बात का जरूर ख्याल रखें कि भेड़ चेचक का टीका केवल भेड़ और बकरी चेचक का टीका केवल बकरियों में करना चाहिए.
पेट के कीड़े और आंत के कीड़ों को खत्म करने की दवा जरूर पिलाएं. पहली प्रथम बार डिवर्मिग 3 माह की आयु में करवा लें. फिर डिवर्मिंग हर साल मई, जून, मानसून के पहले करवा लें.
डिवर्मिंग (Deworming) के लिये दवाओं के तौर एलबेन्डाजोल, फेनबेनडाजोल, निलजान, आइवरमैक्टिन प्रत्येक बार दवा बदल देवें इससे परजीवी के खिलाफ रजिस्टेंस विकसित नहीं हो पाता है.
डिपिंग (Dipping) बाहरी परजीवियों से बचाव के लिए साल में दो बार गर्मियों और सर्दियों से पहले भेड़ व बकरियों को ब्यूटाक्स या इक्टोमिन या टिकोमैक्स का 0.1 प्रतिशत का पानी में घोल बना कर नहलावें. इससे फायदा होगा.
डिपिंग करते समय बरतें ये सावधानी
पशु को नहलाने से पहले पानी पिला लें. कम से कम 5-10 भेड़ और बकरियों की टेस्ट डिपिंग 24 घण्टे पहले कर लें. यदि सब ठीक है, तो सभी भेड़ व बकरियों को नहलावें. वहीं काक्सीडियोसिस इस रोग का प्रभाव 1-6 माह की उम्र के बीच ही रहता है. पहली बार ड्रेन्चिग 1-3 माह की उम्र में करें. दवा के तौर पर एमप्रोलियम (Amprolium) 50-100 मिलीग्राम/किलोग्राम शरीर की भार की दर से 5 दिनों तक पिलानी चाहिए. विभिन्न बीमारियों के बचाव हेतु जन्म के तुरन्त बाद बच्चों को खीस अवश्य पिलायें.
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