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Green Fodder: दुधारू पशुओं को खिलायें ये हरा चारा, बढ़ जाएगा दूध उत्पादन, पढ़ें इसकी खासियत

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

पशुपालन में पशुओं को हरा चारा देना बहुत जरूरी होता है. पशुओं को हरा चारा देने से उनको जरूरी पोषक तत्व मिल जाता है. एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि अगर पशु दूध नहीं दे रहा है तो उसे दिनभार में 15 से 20​ किलो हरा चारा देना चाहिए. जबकि दुधारू पशुओं को दिए जाने वाले चारे में दो तिहाई हिस्सा हरा चारा तथा एक तिहाई हिस्सा सूखा चारा शामिल करना चाहिए. अगर पशुओं को चारा दिया जाए तो इससे उन्हें दूध उत्पादन करने में मदद मिलती है. जब हरा चारा उपलब्ध नहीं होता है उन्हें साइलेज भी दिया जाता है. ताकि जरूरी पोषक तत्व मिल जाएं.

पशुओं को दिये जाने वाले हरे चारे में नेपियर एक बेहतरीन चारा फसल है, जो रोडेसिया से भारत में 1912 में आया है. नेपियर 8.2 प्रतिशत प्रोटीन, कैल्शियम एवं फास्फोरस से भरपूर है, जो दुधारू जानवर के लिए बहुत ही उपयोगी है. यह बहुवर्षीय घास है जो 1500-1600 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर देता है जो अन्य चारा फसल के उत्पादन से कई गुना ज्यादा है. डेयरी व्यवसाय के लिए यह फसल बड़ा ही उपयोगी है.

नेपियर की तमाम डिटेल पढ़ें यहां
उन्नत वैरायटी: एन.बी. 21, पूसा जैन्ट और IGFRI-10 एन.-5, ईवी.-4 इसकी वैरायटी है. पूसा जैन्ट में ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है.

मिट्टीः इसकी खेती बलुई दोमट से भारी दोमट अच्छी जल निकास और आर्गेनिक वाली मिट्टी सबसे उपर्युक्त होती है.

बुआई का समयः मार्च से अगस्त तक इसकी बुआई की जा सकती है.

बुआई की दूरीः कतार से कतार की दूरी 90 से.मी. एवं पौधा से पौधा की दूरी 60 से.मी. रखी जाती है.

बीज दरः 3 से 4 किलो ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर या 35 से 40 हजार जड़युक्त जोड़ी (रूट स्लिप) प्रति हेक्टेयर की दर से दी जाती है.

खेत की तैयारीः खेत की अच्छी तरह जुताई कर हरेक जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को हल्की और भुरभुरी बना लेते हैं खेत से खर-पतवार और फसलों के वेस्ट को चुनकर निकाल देनी चाहिए. बुआई से एक माह पूर्व 150-200 क्विंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में मिलाकर जुताई कर दी जानी चाहिए.

बुआईः इसकी बुआई गन्ने की तरह की जाती है. गन्ने की तरह कटिंग काट कर हरेक कटिंग में दो तीन आंख वाली (बड) नोड देखकर कटिंग कर लेते हैं जिसमें एक या दो (आंख) जमीन में गाड़ देते हैं शेष भाग ऊपर छोड़ दिया जाता है. इस फसल में जमने लायक बीज बड़ी मुश्किल से बनते हैं. इसकी बुआई गगेड़ी बनाकर (कटिंग से) ही की जाती है.

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