नई दिल्ली. बिहार में बाढ़ जैसी आपदाएं पशुपालकों को बड़े आर्थिक नुकसान में पहुंचा देती हैं. कई बार पशुओं की मौत भी हो जाती है. प्राकृतिक आपदा और राज्य सरकार द्वारा दर्ज की गई स्थानीय आपदाओं में पशुपालकों के पशुओं की मौत की स्थिति में सरकार द्वारा सहायता अनुदान दिये जाने का प्रावधान है. सहाय्य अनुदान के दावा और भुगतान की प्रक्रिया के बारे में हम आगे आपपको जानकारी देंगे. सरकार की ओर से बताया गया है कि ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पशुपालकों को नुकसान न हो और वो पशुपालन करते रहें.
बताते चलें कि इस योजना की तमाम जानकारियां विभागीय वेबसाईट (www.ahd.bih.nic.in) पर उपलब्ध है. वहीं जिला पशुपालन कार्यालय एवं भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी / प्रखण्ड पशुपालन पदाधिकारी के कार्यालय में उपलब्ध है.
आवेदन एवं भुगतान की प्रक्रिया के बारे में जानें
पशु मृत्यु के पश्चात् अगर शव प्राप्त हो तब पशुपालक द्वारा नजदीकी पशु चिकित्सा पदाधिकारी को सूचना दी जायेगी. फिर निर्धारित प्रपत्र (प्रपत्र-क) में आवेदन दिया जायेगा. पशु चिकित्सा पदाधिकारी शव का पोस्टमार्टम करेंगे तथा आवेदन अंचलाधिकारी को प्रेषित करेंगे. पशु शव अन्त्य परीक्षण की स्थिति में नहीं रहने (कई दिन पुराने होने, सड़ जाने आदि) पर पशुचिकित्सा पदाधिकारी द्वारा प्रमाण-पत्र के साथ मृत पशुओं की संख्या से संबंधित स्पष्ट रिपोर्ट अधिकारी और जिला पशुपालन पदाधिकारी को दिया जायेगा. रिपोर्ट अधिकारी आवेदन के अनुसार स्वीकृति हेतु आवश्यक कार्रवाई करेंगे.
पशु शव नहीं मिलने की स्थिति में
पशुपालक द्वारा स्थानीय थाना में पशु क्षति के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करायी जायेगी. पशुपालक का आवेदन स्थानीय मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य, सरपंच, पंच, वार्ड सदस्य द्वारा अग्रसारित होना चाहिए. प्राथमिकी की प्रति संलग्न करते हुए पशुपालक द्वारा आवेदन संबंधित अंचलाधिकारी को दी जायेगी. रिपोर्ट अधिकारी राजस्व कर्मचारी, अन्य कर्मी से वास्तविक रूप से पशु क्षति संबंधी जांच के बाद स्वीकृति के लिए फाइल आगे बढ़ाएंगे.
कैसे मिलेगी मदद
रिपोर्ट अधिकारी पशु क्षति संबंधी सूचना को ससमय जिला पदाधिकारी को उपलब्ध करायेंगे. जिला पदाधिकारी द्वारा आवश्यक जांचो के बाद अभिलेख स्वीकृत कराकर घटना के एक सप्ताह के अन्दर सहाय्य अनुदान का भुगतान किया जायेगा. अन्य आपदाओं यथा सुखाड़, वज्रपात्त, अग्निकाण्ड आदि की स्थिति में जरूरी रीक्षण कराना आवश्यक होगा. बढ़ी संख्या में एक ही स्थान में एक ही तरह की परिस्थिति में पशुओं की मृत्यु होने पर रैण्डम रूप से यथासंभव पांच से दस प्रतिशत पशुओं और मुर्गियों का अन्त्य परीक्षण करते हुए मृत्यु का कारण निर्धारित किया जाएगा.
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