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Animal Fodder: जिस वक्त रहती है चारे की कमी तब इस पेड़ से लिया जाता सकता है बेहद पौष्टिक चारा

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशुपालन में हरे चारे की कमी रहती है. ज्यादा ठंड और ज्यादा गर्मी में पशुपालकों के सामने ये संकट रहता है. हालांकि हम सबके आसपास बहुत सारे पेड़ हैं, जिनकी पत्तियों का इस्तेमाल करके हम पशुओं की पौष्टिकता की जरूरत को पूरा कर सकते हैं. उसी में से बबूल का भी पेड़ है, जिसकी शाखें और पत्तियां बड़े ही काम की हैं. इसे हम पशुओं को दे सकते हैं और ये इसका चारा पशुओं की पौष्टिकता की जरूरत को पूरा कर देंगी. भारतीय चारागाह और चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के प्रिंसिपल सांइटिस्ट एसएन राम और एके शुक्ला ने बताया कि बबूल की ​पत्तियों का इस्तेमाल पशु चारे के लिए किया जा सकता है.

भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान झांसी के एक्सपर्ट के मुताबिक बबूल की पत्तियां और छोटी नयी-नयी शाखाएं चारे के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं. इसका चारा पौष्टिक और आसानी से पचने वाला है. इसमें प्रोटीन 13 से 20 प्रतिशत, रेशा 9 से 20 प्रतिशत, नाइट्रोजनमुक्त निष्कर्ष 50 से 70 प्रतिशत, राख 4 से 11 प्रतिशत और कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम की मात्रा इसमें 1.5-3.0 प्रतिशत, 0.1-0.5 प्रतिशत और 0.4-0.6 प्रतिशत होती है.

ऊंटों और बकरियों को खिलाएं बबूल का चारा
सालभर बबूल के वृक्षों से 4 से 5 टन पत्तियां खुद ही गिरती हैं. बबूल की फलियों को भी चारे के रूप में उपयोग किया जाता है. इसमें प्रोटीन 14-16 प्रतिशत, रेशा 8-42 प्रतिशत, 50-70 प्रतिशत नाइट्रोजनमुक्त निष्कर्ष, 0.8-1.1 प्रतिशत कैल्शियम और 0.1-0.3 प्रतिशत फॉस्फोरस होता है. औसतन हर साल पेड़ लगभग 18 किलोग्राम फलियां हासिल की जाती है. उत्पादन उपयुक्त जलवायु में ये प्रति वृक्ष 40-60 किलोग्राम तक पहुंच जाती है. बबूल ऊंटों और बकरियों के लिए मुख्य चारा उपलब्ध कराता है. जब अन्य सोर्स नहीं होते हैं, तो सूखे के मौसम में भी ये चारा उपलब्ध रहता है.

आसानी से पच जाता है चारा
पेड़ की छाल काली और गहरे भूरे रंग की खुरदरी होती है. मार्च से मई के मध्य बबूल में नई पत्तियां निकलती हैं. नई पत्तियां निकलने से ठीक पहले पुरानी पत्तियां गिर जाती हैं. प्राकृतिक वनों में उगने के साथ-साथ बबूल का पौधरोपण आसानी से किया जा सकता है. बबूल के वृक्षों की बढ़वार तुलनात्मक रूप में उत्तर भारत में दक्षिण की अपेक्षा अधिक होती है. उत्तर भारत में इसकी वृद्धि 40-50 फीट तक पहुंच जाती है. नमीयुक्त बलुई दोमट मृदा इसकी ग्रोथ के लिए अच्छी होती है. लवणीय मृदा में पर्याप्त नमी की कमी होने के कारण वृद्धि अच्छी नहीं होती है. बबूल की पत्तियां एवं छोटी नयी-नयी शाखाएं चारे के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं. इसका चारा पौष्टिक एवं पाचक होता है. इसके चारे में प्रोटीन की मात्रा 13-20 प्रतिशत होती है. इसकी लकड़ी मजबूत एवं टिकाऊ होती है.

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