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Animal Fodder: गर्मी के मौसम में पशुओं को नहीं होगा चारे का संकट, एक्सपर्ट के टिप्स से करें सिंचाई और कटाई

गर्मी और बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली यह एक महत्त्वपूर्ण अनाज वाली चारा फसल है. ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर, ज्वार को देश के सभी हिस्सों में उगाया जाता है.
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. आमतौर पर अप्रैल माह तक रिजका व बरसीम के अलावा अधिकांश रबी चारा फसलों की कटाई कर ली जाती है. बीज उत्पादन के लिए छोड़ कर रखी गई जौ व जई चारा फसल से अप्रैल माह में बीज प्राप्त कर लिया जाता है. अन्य मौसम की अपेक्षा जायद में हाई टेंप्रेचर, ड्राई व तेज हवाओं के कारण चारा फसलों में पानी की ज्यादा से ज्यादा जरूरत होती है. ऐसे में पशुओं के लिए भी चारे की कमी रह रहती है. अगर पशुओं को उनकी जरूरत के मुताबिक हरा चारा नहीं मिलता है तो फिर उत्पादन कम हो जाता है.

एक्सपर्ट कहते हैं कि किसान भाई जायद चारा फसलों से अधिक उत्पादन लेने के लिए कुछ ऐसी फसलें हैं, जिनकी बुआई करके अच्छी फसल हासिल कर सकते हैं. उन्हें पशुओं के लिए चारा की भी कोई कमी नहीं होगी. इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं कि अप्रैल, मई और जून में किसान किन फसलों के जरिए अपने पशुओं के चारा हासिल कर सकते हैं. यहां आपको रबी और जायद की फसलों के बारे में जानकारी दी जा रही है.

रबी चारा फसलें
जई
जई की कटाई अप्रैल माह में की जाती है. बहुकटाई वाली किस्मों में कटाई पूर्व सिंचाई करें ताकि अंतिम कटाई पर हरा चारा अधिक प्राप्त हो सके. बहुकटान किस्मों से प्रति हेक्टेयर 450-600 क्विंटल हरा चारा एवं 15-20 क्विंटल बीज प्राप्त किया जा सकता है.

रिजकाः रिजका की हल्की मिट्टी वाले क्षेत्रों में 5-7 दिन के अन्तराल पर और भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में 10-12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें. बीज उत्पादन के लिए छोड़ी गई फसल में सिंचाई न करें. हरे चारे के लिए की गई कटाई के बाद तुरन्त सिंचाई करें. कटाई की बात करें तो 30-35 दिन के अन्तराल पर कटाई करें. इस फसल से औसतन 750-800 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टर प्राप्त होता है. बहुवर्षीय किस्में 3-4 वर्ष तक हरे चारे का उत्पादन देती है, रिजका की फसल से एक वर्ष में 8-10 कटाई ली जा सकती है. बीज के लिए छोड़ी गई रिजके की फसल, मई माह में पक कर तैयार हो जाती है. अमरबेल से प्रभावित क्षेत्र से बीज उत्पादन नहीं लेना चाहिए.

बरसीमः बरसीम में 8-12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें. कीट का प्रकोप होने पर मैलाथियान 50 ई.सी का 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. कीटनाशक छिड़काव के 2 सप्ताह बाद ही कटाई करनी चाहिए, क्योंकि उससे पूर्व हरा चारा में कीटनाशक के अवशेषी प्रभाव मौजूद रहते है, जो पशु स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं. बरसीम में कटाई 25-30 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए. अप्रैल माह के बाद फिर बढ़वार अधिक नहीं होती है, इसलिए अप्रैल के अन्त तक अंतिम कटाई कर लें. मई माह में बीज के लिए छोड़ी गई बरसीम की फसल पक कर तैयार हो जाती है. फसल सूखने के बाद बैसर से अथवा कूटकर बीजों को निकाल लें. सुरक्षित व नमी रहित स्थान पर भंडारण करें. भंडारण के समय बीजों में नमी की मात्रा 10 प्रतिशत से कम होनी चाहिए.

जायद फसलें
मक्काः मक्का की सिंचाई जायद में हरे चारे के लिए 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है. मक्का में कटाई नर मांजर निकलने की अवस्था पर करें. इस फसल से 350-400 किंवटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है.

लोबियाः लोबिया की सिंचाई जायद में 8-10 दिन के अन्तराल पर 6-7 सिंचाई की आवश्यकता रहती है. लोबिया की कटाई 50 प्रतिशत पुष्पावस्था पर करें. इस फसल से 250-300 क्विटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त कर सकते हैं.

ज्वारः ज्वार की सिंचाई जायद मौसम में 5-6 दिन पर करें. इसमें सबसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है. पौध संरक्षण की बात की जाए तो शूट फ्लाई एवं तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए मिथाइल डेमेशन 25 ई.सी. 500 मीली अथवा कार्बोफ्यूरोन 3 प्रतिशत सी. जी. 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. एक कटान वाली प्रजाति की कटाई 65 से 75 दिन पर करनी चाहिए. बहुकटान की कटाई 50 से 55 और बाकी की कटाई 30 से 35 दिनों पर करनी है.

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