नई दिल्ली. आजकल केमिकल के कारण मिट्टी की उर्वरता में कमी आ जाती है, देशी उपाय से मिट्टी में गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है. मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल किया जाता है. हरी खाद एक ऐसी तकनीक है जिसमें फसल के अवशेषों, जैसे कि ढैंचा या सनभांग, को मिट्टी में दबाकर खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए बेहद उपयोगी होती है. हरी खाद का उपयोग जल धारण क्षमता में सुधार करने के लिए भी करते हैं. हरी खाद के प्रयोग से खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है.
मिट्टी की उर्वरता कायम रहे और उत्पादन में वृद्धि तय हो इसके लिए मिट्टी का स्वास्थ्य संतुलित रहना जरूरी है. हरी खाद मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या और गतिविधि को बढ़ाती है, जो पौधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं. हरी खाद के लिए किसान ढैंचा और सनई की बुवाई कर सकते हैं. एक्सपर्ट क्या कहते हैं आइये जानते हैं उनकी राय.
मानसून की शुरुआत में करेंः कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह चौहान का कहना है कि हरी खाद से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है. किसान खेत में मानसून की शुरुआत में हरी खाद के लिए ढैंचा और सनई की बुवाई कर सकते हैं. प्रति हेक्टेयर बुवाई के लिए 50-60 किलो ढैंचा और 60-70 किलो सनई बीज की जरूरत होगी. ढैंचा और सनई के पौधे जब 40 से 60 दिन के हो जाएं, तो गहरी जुताई कर पूरी फसल को मिट्टी में मिला दें. कुछ हरी खाद वाली फसलें, जैसे कि दलहनी फसलें, वातावरण से नाइट्रोजन को स्थिर करके मिट्टी में जोड़ती हैं. उड़द, मूंग, लोबिया, चना, इत्यादि दलहनी फसलें भी हरी खाद के लिए उपयोगी हैं.
मानसून की शुरुआत में करें बुवाई: हरी खाद से लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता भी बढ़ती है. फसलोत्पादन में वृद्धि के साथ गुणवत्ता भी अच्छी होती है. वहीं खरपतवार नियंत्रण में आसानी होती है. पौधों में बीमारी और कीटों के लगने की संभावना कम हो जाती है. नत्रजन की मात्रा बढ़ती है. हरी खाद क्षारीय भूमि को सुधारकर खेती के योग्य बनाती है.एक्सपर्ट का कहना है कि मानसून की शुरुआत में बुवाई की जाए. फसल को पलटते समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है. इसके बाद पौधे सड़कर मिट्टी में हरी खाद का काम करेंगे. हरी खाद से मिट्टी में जीवांश पदार्थ व पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है. पोषक तत्वों का निछालन कम से कम होता है, साथ ही भूमि की जल धारण, संचयन एवं वायु संचार क्षमता में वृद्धि होती है.
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