नई दिल्ली. विस्तार शिक्षा निदेशालय, गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुधियाना ने पंजाब के विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के पशु वैज्ञानिकों के लिए “पर्यावरण अनुकूल पशुधन खेती” पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया. इस मौके पर गडवासु के कुलपति डॉक्टर इंद्रजीत सिंह ने बताया कि पशुधन उत्पादन पर्यावरण के साथ नाजुक संतुलन पर निर्भर करता है, जो पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हुआ है.
पशुधन प्रबंधन प्रथाओं को स्थानांतरित करना मानव भलाई के लिए खतरा
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में पर्यावरण-अनुकूल पारंपरिक ज्ञान और कृषि पद्धतियों का समृद्ध भंडार है. हाल के तकनीकी विकास के परिणामस्वरूप पशुधन प्रबंधन प्रथाओं को इनपुट गहन प्रबंधन की ओर स्थानांतरित कर दिया गया है जो मानव आबादी की भलाई के लिए खतरा है. हमारी आबादी के लिए सुरक्षित और रसायन मुक्त भोजन के लिए जातीय-पशुचिकित्सा प्रथाओं पर आधारित छिपे हुए ज्ञान को उजागर करने और आधुनिक तकनीक के आलोक में उन्हें संशोधित करने की तत्काल आवश्यकता है.
खाद्य उत्पादन के साधनों को बढ़ावा देना
अटारी-जोन-1, लुधियाना के निदेशक डॉक्टर परवेंदर श्योराण ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ टिकाऊ खाद्य उत्पादन के साधन के रूप में वन हेल्थ को बढ़ावा देने पर नीति निर्माताओं के बीच काफी चर्चा हो रही है। उन्होंने कहा कि यह प्रशिक्षण कृषक समुदाय के बीच टिकाऊ खाद्य उत्पादन की जानकारी प्रसारित करने और इसे अपनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
जलवायु परिवर्तन कर सकता पशुओं के प्रजनन को प्रभावित
विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. प्रकाश सिंह बराड़ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन भारत में डेयरी उद्योग के लिए गंभीर खतरा है. जलवायु परिवर्तन डेयरी पशुओं के प्रजनन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, साथ ही उनके उत्पादन को भी कम कर सकता है. यह प्रशिक्षण केवीके के वैज्ञानिकों को पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों के बारे में संवेदनशील बनाने के लिए आयोजित किया गया है जो डेयरी पशुओं के समग्र कार्बन पदचिह्न को कम कर सकते हैं.
पशुचिकित्सा पद्धतियों के उपयोग पर चर्चा
डॉक्टर सिमरनप्रीत कौर और डॉ. रजनीश शर्मा ने जैव सुरक्षा और एंटीबायोटिक अवशेष मुक्त पशुधन उत्पादों के महत्व पर चर्चा की. डॉ. आर.के. शर्मा ने डेयरी पशुओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए जातीय-पशुचिकित्सा पद्धतियों के उपयोग पर चर्चा की. डॉ. आर एस ग्रेवाल ने पशुधन के दूध उत्पादन में सुधार के लिए पोषण संबंधी रणनीतियों के बारे में बात की. डॉ. संजय चौधरी ने कृषि में एक संसाधन के रूप में पशु अपशिष्ट का उपयोग करने के तरीकों के बारे में बताया जिससे मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सके.
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