नई दिल्ली. भारत कृषि प्रधान देश होने की वजह से ज्यादातर लोगों का आर्थिक जीवन पशुधन पर भी आधारित है. अब भी पशुओं का पालन बड़ी मात्रा में किया जा रहा है. यही वजह है कि देश में बड़े पैमाने पर भैंस, गाय, भेड़-बकरी का पालन किया जा रहा है. पशुपालन से जुड़कर लोग लाखों रुपये प्रतिमाह की कमाई कर रहे हैं. मगर, कभी-कभी छोटी सी गलती या लापरवाही इतना बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचा देती है कि लोग संभल नहीं पाते. ये नुकसान सबसे ज्यादा बरसात और सर्दी के मौसम में होती है. बारिश में पशुओं को कई तरह की बीमारियां लग जाती हैं. आज इन्हीं बीमारियों के बारे में बताने जा रहे हैं इस मौसम में कौनसी बीमारी होती हैं और उनसे पशुओं को कैसे बचाया जा सकता.
देश की अर्थव्यवस्था में पशुधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अगर हम ग्रामीण परिवेश की बात करें तो पशुपालन से होने वाली इनकम किसान, पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनाती है. सरकार भी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनए सचालित कर रही है. मगर, कभी-कभी ऐसी बीमारियां पशुओं को अपनी चपेट में ले लेती हैं जिससे बकरी में लग जाती हैं, जिससे पशपालकों को बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है. अगर हम पहले ही इन बीमारियों को लेकर सचेत हो जाएं तो पशुओं की मृत्यु की दशा में हम बड़े नुकसान से बच सकते हैं.
निमोनिया होता है बेहद घातक
बरसात के मौसम में पशुओं को बहुत सी बीमारियां लग जाती हैं, जिसमें निमोनिया बेहद घातक बीमारी है. अगर इस पर काबू नहीं पाया गया तो ये जानवर को मार तक डालती है. निमोनिया को पीपीआर रोग भी कहते हैं. कुछ लोग इस रोग को फेफड़े का रोग भी कहते हैं. इससे पशुओं में श्वास लेने में दिक्कत हो जाती है. इस बीमारी में पशुओं के फेफड़े तंत्र में सूजन आ जाती है, जिससे उन्हें श्वास लेना मुश्किल हो जाता है. इस बीमारी के कारण पशुओं व उनके बच्चों में मृत्युदर अधिक होती है. अगर इन पशुओं में ये बीमारी है तो एंटीबायोटिक उपचार से इसका निदान किया जा सकता है. वायरस जनित रोग में एंटीबायोटिक देने पर दूसरे सामान्य जीवाणुओं को बढ़ने से रोका जा सकता है.
ऐसे करें निमोनिया से बचाव
इस बीमारी से बचने के लिए पशुओं के आवास व वातावरण का उचित प्रबंध और पूर्ण आहार देने से इस बीमारी की आशंका कम हो सकती है. पशुओं व खासकर उनके बच्चों को ज्यादा सर्दी और बारिश से बचाना चाहिए. बीमार पशुओं को अलग रखकर उपचार करना चाहिए.
पशुओं में घातक ह जोंस रोग
जोंस रोग पशुओं के लिए ये बीमारी भी बहुत घातक है. इस बीमारी का प्रमुख लक्षण पशुओं का दिन प्रतिदिन कमजोर होना और उसकी हड्डियां दिखाई देना है. ये बीमारी पशुओं के संपर्क में आने से फैलती है. विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बीमारी के लिए अभी कोई टीका नहीं हैं. इस रोग के चपेट में आने से बकरी मर जाती है. ये इतनी खतरनाक बीमारी है कि जिन पशुओं में ये फैल जाए तो धीरे-धीरे साथ रहने वाले पशुओं को ही खत्म कर देती है. इसलिए इस बीमारी का बचाव सिर्फ इतना है कि जब भी इस तरह के कोई लक्षण दिखाई दें तो उस जानवर को दूसरे जानवरों से बिल्कुल अलग कर देना चाहिए.
पशुओं में खुर गलन रोग होता है बेहद घातक
बरसात के दौरान पशुओं में खुर गलन रोग हो जाता है और ये रोग बारिश से लेकर सर्दियों तक चलता है. यह बीमारी स्पिरोफोरस,नेक्रोफोरिस नामक जीवणु से पैदा होती है. इसका मुख्य कारण गीली मिट्टी और बारिश के पानी में खुरों के डूब रहने से फैलता है. इस रोग से पशु लंगड़ी तक हो जाती है, जिससे पशु न तो ठीक से चल पाता है और न चर पाता. इसमें खुरों के बीच का मांस व खाल सड़कर मुलायम पड़ने के साथ ही दुर्गन्ध पैदा होती है.
ऐसे बचा सकते हैं पशुओं के खुरों को
अगर बीमारी से अपनी पशुओं को बचाना है तो पशु बाड़े के गेट पर फुटबाथ बनाकर उसमें चूने या नीले थोथे का घोल बनाकर पशुओं को उसमें कम से कम पांच मिनट तक खड़ा करके बाहर भेजना चाहिए.
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