नई दिल्ली. छोटे जुगाली करने वाले पशुओं जैसे भेड़ और बकरी को एक गंभीर बीमारी होती है. जिसे पेस्टे डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स” (PPR) कहा जाता है. वहीं भेड़ बकरी के प्लेग के नाम से भी इस बीमारी को जाना जाता है. ये बेहद ही संक्रामक और वायरल बीमारी है. इस बीमारी की वजह से पशुओं को काफी नुकसान होता है. इसलिए जैसे ही इस बीमारी की पहचान हो तुरंत ही पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए और संक्रमित पशुओं का इलाज करवाना चाहिए. अगर ऐसा न किया जाएगा तो फिर नुकसान उठाना पड़ सकता है.
पीपीआर जहां खतरनाक बीमारी है तो वहीं ये बीमारी इस महीने में एक बार फिर से जानवरों में देखने को मिल सकती है. बता दें कि कई ऐसे राज्य हैं, जहां पर छोटे जुगाली करने वाले जानवरों भेड़ और बकरी को ये बीमारी होने के संकेत हैं. सरकार की ओर से एडवाइजरी जारी की गई है और उसमें बताया गया है कि इस बीमारी का खतरा देश के कुछ जिलों में ज्यादा है. इसलिए उन जिलों को हाई रिस्क जोन में रखा गया है. पशुपालक भाइयों को एहतियात बरतने की सलाह दी गई है.
कहां-कहां ज्यादा है खतरा, जानें यहां
गुजरात के अमरेली जिले में बकरी, बकरियां और भेड़ में बीमारी हो सकती है. वहीं उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में भी इस बीमारी का होने का खतरा है. मध्य प्रदेश के सीधी में भी बकरियों और भेड़ों को यह बीमारी अपना शिकार बन सकती है. वहीं हिमाचल प्रदेश के सोलन में और बिलासपुर में इस बीमारी के फैलने का खतरा है. इसी तरीके से राजस्थान में बारां जिले में इस बीमारी के फैलने का खतरा बताया जा रहा है. जबकि महाराष्ट्र के सिंहली में यह बीमारी जानवरों में देखी जा सकती है. इन जिलों के पशुपालक भाइयों को सतर्क रहने की सलाह सरकार की ओर से दी गई है.
जानें बीमारी से बचाव के लिए क्या करें
बता दें कि ये बीमारी मॉर्बिली वायरस की वजह से होती है जो रिंडरपेस्ट वायरस से संबंधित है. जब किसी बकरी या फिर भेड़ को यह बीमारी होती है तो उनमें बुखार मुंह और गले में छाले, दस्त, सांस लेने में तकलीफ दिखाई देती है. जब मामला गंभीर हो जाता है तो उनकी मृत्यु भी हो सकती है. इस बीमारी को रोकने के लिए वैक्सीन मौजूद है जो इसे रोकने में कारगर है. बता दें कि दुनिया भर में 70 से ज्यादा देशों में इस बीमारी की पुष्टि की गई है. कई देशों में इस बीमारी को फैलने का खतरा ज्यादा रहता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि जैसे ही इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें. संक्रमित पशुओं को तुरंत अलग कर देना चाहिए. ताकि स्वस्थ पशुओं में यह बीमारी न फैले.
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