नई दिल्ली. पोल्ट्री सेक्टर में भारत के किसी भी स्थानीय बाजार में जाएं, और आपको ब्रॉयलर चिकन रिटेल विक्रेता काम करते हुए मिल जाएंगे. सेक्टर में ये आपूर्ति श्रृंखला की आखिरी कड़ी हैं, जो उपभोक्ताओं को जीवित या ताजा कटा हुआ चिकन बेचते हैं. कई भारतीयों के लिए, गीला बाजार चिकन खरीदने का एकमात्र स्थान है, और रिटेल विक्रेता इसके दिल की धड़कन हैं. एक अनुमान के मुताबिक 1.5 से 2 मिलियन खुदरा विक्रेता पूरे भारत में काम करते हैं. जिससे उनकी आजीविका चलती है.
गौरतलब है कि रिेटेल विक्रेता कम मार्जिन पर काम करते हैं, कटिंग, वेस्ट निपटान और स्वच्छता रखरखाव के बाद हर एक बर्ड पर मुश्किल से उन्हें 15-25 रुपये ही कमाई होती है. जिससे वो अपना गुजारा करते हैं. जबकि इसकेे बावजूद उनके सामने कई तरह की मुश्किल भी आती है.
बढ़ रही है पैक मीट की डिमांड
कुक्कुट विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, मथुरा (Department of Poultry Science, College of Veterinary Science and Animal Husbandry, Mathura) के एक्सपर्ट का कहना है कि उपभोक्ताओं के बीच बढ़ती स्वास्थ्य जागरुकता भी संसाधित और पैकेज्ड चिकन की मांग को बढ़ा रही है.
इसके चलते पारंपरिक गीले बाजार मॉडल को खतरे में डाल रही है. इससे उनके सामने कई मुश्किल खड़ी हो रही हैं.
कई लोग स्वच्छता मानकों को पूरा करने के लिए अपने बुनियादी ढांचे को उन्नत कर रहे हैं, जबकि अन्य संगठित खुदरा श्रृंखलाओं के साथ साझेदारी की संभावना तलाश रहे हैं.
गौरतलब है कि बढ़ती इनकम शहरीकरण और बदलती आहार संबंधी आदतें चिकन मांस की मांग को बढ़ा रही है.
बाजार में सालाना 8-10 फीसद की वृद्धि होने का अनुमान है, जो इंटीग्रेटर्स, व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं के लिए समान रूप से अपार अवसर प्रदान करता है.
बताते चलं कि भारत चिकन मांस का एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभर रहा है.
खासतौर पर मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में. निर्यात-उन्मुख नीतियों के लिए सरकारी समर्थन विकास को और बढ़ावा दे सकता है.
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