नई दिल्ली. सरकार पशुपालन में दिन ब दिन कुछ नया कर रही है ताकि पशुपालन आसान बन सके और इससे पशुपालकों को फायदा पहुंचाया जा सके. गौरतलब है कि पशुपालन में पशुओं की बीमारी की वजह से पशुपालकों को बड़ा नुकसान होता है. वहीं कई रिसर्च में ये भी सामने आ चुका है कि बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल की जा रही एंटीबायोटिक दवाओं से भी पशुओं को नुकसान होता है. जिसका समाधान निकालते हुए अब पशुओं के इलाज के तौर पर आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है.
बता दें कि अब गाय, भैंस, बकरी, भेड़ जैसे मवेशियों की बीमारियों का इलाज अब आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाओं से भी किया जा सकेगा. खासकर एलोपैथी की एंटीबायोटिक औषधियों को जगह आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक विकल्पों को आजमाया जाएगा. जिसको लेकर मध्य प्रदेश का पशु चिकित्सा विभाग इसकी तैयारी में जुट गया है.
एंटीबायोटिक दवाओं का क्या है नुकसाान
अफसरों की ओर से कहा गया है कि सब कुछ ठीक रहा तो अगले छह महीने में शासकीय पशु चिकित्सालय में आधिकारिक तौर पर इस तरह का इलाज शुरू दिया जाएगा. बताया जा रहा है कि पशुपालन और डेयरी विभाग इसकी नीति तैयार कर रहा है. इस नीति को पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कुछ जिलों में लागू किया जाएगा. परिणामों की समीक्षा के बाद इसे पूरे प्रदेश में विस्तारित करने का निर्णय होगा. गौरतलब है कि मवेशियों के किसी भी संक्रमण की रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का अंधाधुंध उपयोग भी बढ़ा है. इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि मवेशियों के शरीर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट बैक्टीरिया विकसित हो रहे हैं. यह बैक्टीरिया मल, मूत्र और अन्य तरल पदार्थों के माध्यम से इंसानों तक पहुंचते हैं और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करते हैं.
एंटीबायोटिक का विकल्प है आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक
इसी साल मार्च महीने में आयोजित राष्ट्रीय वर्कशॉप में देशभर के विज्ञानियों, पशु चिकित्सकों और विशेषज्ञों ने इस पर चिता जताई थी. वर्कशॉप में यह निष्कर्ष निकाला गया कि एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग पशु व मानव दोनों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है. इसके समाधान के रूप में आयुर्वेद और होम्योपैथी पद्धति को इलाज का मुख्य आधार बनाने की अनुशंसा की गई. कार्यशाला में ही कहा गया था कि आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाएं न केवल सुरक्षित होती है. बल्कि उनका कोई पाश्वं प्रभाव नहीं होता. ये दवाएं शरीर को अंदर से मजबूत बनाती है और पशुओं की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है.
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