नई दिल्ली. भीषण गर्मी ने पूरे जनजीवन को प्रभावित कर दिया है. इसमे आम जन से लेकर पशु-पक्षी भी प्रभावित हो रहे हैं. पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए सरकारें अपने-अपने स्तर से काम कर रही हैं. मगर, पशुपालकों को ऐसी भीषण गर्मी में अपने पशुओ को बचाने के लिए खुद से भी जतन करने होंगे. भीषण गर्मी में पशुओं का दूध कम हो जाता है ऐसे मे पशुओं मे कैल्शियम कमी न हो. अगर कैल्शियम की कमी हो गई तो दुधारू पशुओं मे दूध की मात्रा तो कम हो ही जाएगी. कई बीमारिया भी हो जाती हैं. कैल्शियम की कमी से न तो पशु ठीक से चलफिर सकते हैं और जब बैठ जाएं तो खड़े होने में भी तकलीफ का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पशुपालकों को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. कभी-कभी तो हालात ऐसी हो जाती है कि जानवर मर भी जाते हैं, जिससे किसान-पशुपालकों को आर्थिक नुकसान तक उठाना पड़ता है.
देश की करीब 60–65 फीसदी आबादी गांव में रहती है. ग्रामीण परिवेश में पशुपालन आम सी बात है, लेकिन अब ये पशुपालन बड़े व्यवसाय के रूप में उभरकर सामने आया है. अब लोग एक-दो नहीं दर्जनों पशुओं का पालन करके डेयरी फार्मिंग कर रहे हैं. मगर, कभी-कभी पशुपालकों के सामने कई तरह की समस्याए खड़ी हो जाती हैं. इसमे सबसे ज्यादा दिक्कत गर्मियों में होती है. इसमें भी सबसे प्रमुख गर्मियों कम कम होने वाला दूध है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. गर्मी में तापमान बढ़ने के कारण दुधारू पशुओं के शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है. उनके शारीरिक हार्मोन्स में बदलाव आ जाता है और पशुओं की दूध देने की क्षमता कम हो जाती है. जब तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच जाता है तब जानवरों का मेटाबोलिज्म धीमा हो जाता है और पशु कम दूध देना शुरू कर देते हैं.
पशुओं में क्यों कम हो जाता है दूध
जब भी तापमान 40 से ऊपर हो जाता है तो दुधारू पशुओं के शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है. उनके शारीरिक हार्मोन्स में बदलाव आ जाता है और पशुओं की दूध देने की क्षमता कम हो जाती है. जब तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच जाता है तब जानवरों का मेटाबोलिज्म धीमा हो जाता है और पशु कम दूध देना शुरू कर देते हैं.गर्मी और धूप की तेज तपिश से पशुओं में तनाव बढ़ जाता है. पशु धीरे-धीरे सुस्त हो जाती है और लू लगने से शरीर का भी तापमान बढ़ जाता है. यदि समय पर उपाय ना किए जाएं तो पशु में थकावट, चक्कर, बेहोशी, त्वचा बेजान होने जैसी दिक्कतें हो जाती है.
इन बातों का रखें खास ध्यान
–दिन में चार से पांच बार पशुओं को ठंडा पानी पिलाएं.
–सुबह और शाम के वक्त पशुओं को ताबाला मे नहलाएं.
–जब तापमान ज्यादा बढ़ जाए तो पानी मे 250 ग्राम चीनी, 20’30 ग्रामी नमक का घोल बनाकर पिलाएं.
–सुबह दस से शाम पांच बजे तक पशुओं को धूप में न बैठाएं न ही चारागाह में छोड़ें। उन्हें छायादार जगह पर आराम करने दे।
–कोशिश करें कि पशु को हरा चारा मिल जाए, अगर नहीं हैं तो सूखे चारे में कुछ सप्लीमेंट्स मिलाकर खिलाएं.
–10 किलो सूखे चारे में 4 किलो मक्का का दिया, तीन किलो खल, 2.5 किलो चोकर, 500 ग्राम गुड़ मिलाकर फीड बनाएं और रोजाना 50 ग्राम खनिज मिश्रण खिलाएं.
–सही समय पर पशुओं के टीके लगवाएं। पशु बाड़े में ठंडक बनाने के लिए उपाय करे.
–अगर गर्मी में पशुओ को लोबिया घास मिल जाए तो बहुत ही बड़िया. लोबिया घास में फाइबर, प्रोटीन और औषधीय गुण होते है, जो पशुओं मे दूध की मात्रा बढ़ जाती है.
–पशुओं मे दूध बढ़ाने के लिए अजोला घास भी खिला सकते हैं. ये घास पानी में उगाई जाती है. पोषण से भरपूर ये ग्रीन फीड पशुओं के लिए संजीवनी समान है.
–प्रत्येक दिन 200-300 ग्राम सरसो का तेल और 250 ग्राम गेहूं का आटा लें,इसका मिश्रण बनाकर रख ले. शाम को जब पशु-चारा पानी खा ले 7-8 दिन तक तो ये मिश्रण देते रहें.
कैल्शियम का संतुलन कैसे बनाए रखें?
पशुपालक चेतन स्वरूप कहते हैं कि पशुपालन में सबसे पहली शर्त ही ये है कि पशुओं के लिए चारे का उचित प्रबंधन करना. चाहे सूखा हो या अकाल पड़े पशुओं को तो चारा चाहिए. अगर चारा नहीं मिलेगी तो इसका असर पशुओं के स्वास्थ्य पर पड़ेगा और जब पशुओं का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा तो दूध उत्पादन नहीं होगा, ऐसे में पशुपालकों को सिर्फ आर्थिक नुकसान ही उठाना पड़गा. इसलिए डेयरी पशुओं में कैल्शियम का स्तर बनाए रखना बेहद जरूरी है. अगर सूखे की स्थिति दिख रही है तो किसान या पशुपालकों को पहले से ही सूखे चारे का प्रबंधन या स्टोर करना चाहिए.
पशुओं में ये होने चाहिए तत्व
पशुओं की आवश्यकता को पूरा करने के लिए फास्फोरस, कैल्शियम के साथ अन्य पोषक तत्व और खनिज युक्त भोजन मिलना चाहिए, जो पशुओं को स्वस्थ रख सकें. पानी कैल्शियम और समग्र स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसलिए मनुष्यों की तरह से ही पशुओं को साफ और ताजा पानी पीने के लिए देना चाहिए. डॉक्टरों की सहायता से रक्त परीक्षण के माध्यम से समय-समय पर पशु के रक्त में कैल्शियम के स्तर की निगरानी करें. इससे किसी भी कमी या असंतुलन का शीघ्र पता लगाने में मदद मिलती है.
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