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Dairy: दूधियों की परेशानियों पर बनी ये फिल्म 36 लाख डेयरी किसानों को फ्री में दिखाई जा रही, जानें क्यों

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अमूल की ओर से जारी किया गया पोस्टर.

नई दिल्ली. डेयरी किसानों की मुश्किलों पर बनी फिल्म देशभर के 50 शहरों के 100 सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है. दरअसल, इस फिल्म को डेयरी किसानों को दिखाया जाएगा. अमूल की ओर से ये फिल्म 36 लाख किसानों को फ्री में दिखाई जा रही है. एनडीडीबी ने भी अपने फेसबुक पेज पर इसके पोस्टर को शेयर करते हुए जानकारी दी है. डेयरी किसानों आह्वान किया गया है कि वो इस फिल्म देखें ताकि उन्हें पता चल सके कि देश में डेयरी उद्योग ने किस तरह की मुश्किलों को पार करते हुए आज बड़ा मुकाम हासिल किया है.

बताते चलें​ कि श्याम बेनेगल द्वारा साल 1976 में फिल्म मं​थन बनाई गई थी. इस फिल्म में उस वक्त के डेयरी किसानों की समस्याओं को उजागर किया गया था. फिल्म दिखाया गया था कि किसानों को उनके दूध का वाजिब दाम नहीं मिलता है. ​किसानों को दूध का रेट फैट की वजह से मिलना चाहिए लेकिन तब के साहूकार किलो के हिसाब से ही का पैसा देते थे. इस फिल्म ने राष्ट्राीय पुरस्कार भी जीता था. कहा जा रहा है कि इस फिल्म को देखकर किसानों को काफी अनुभव मिलेगा.

कल भी दिखाई जाएगी फिल्म
बता दें कि सरकार चाहती है कि किसानों की आय दोगुनी हो. इसको लेकर सरकार की ओर से डेयरी तमाम प्रयास किए जाते हैं. कई योजनाएं चलाई जाती हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान डेयरी उद्योग से जुड़े और फायदा हासिल करें. आज विश्व दुग्ध दिवस है. इसको लेकर अमूल की ओर से किसानों को 1 और 2 जून को डेयरी किसानों पर बनी फिल्म मंथन दिखाने का फैसला किया गया है. ये फिल्म बिल्कुल ​फ्री दिखाई जाएगी. देश के 50 शहरों के 100 सिनेमाघरों में इस फिल्म को 4K रिज़ॉल्यूशन में दिखाया जा रहा है.

इन शहरों में दिखाई जाएगी फिल्म
बात की जाए किन बड़ शहरों में फिल्म दिखाई जा रही है तो मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, सूरत बैंगलरु, वड़ोदरा, जामनगर, गांधीनगर, कोलकाता, मैंगलोर, मैसूरी, भुवनेश्वर, चेन्नई, देहरादून, दिल्ली, हैदराबाद, नोएडा, जयपुर, गुवाहाटी, हुबली, कोच्ची, पटना, हैदराबाद, इंदौर, भोपाल, आनंद, जमेशदपुर समेत अन्य जिले शामिल हैं. एक दिन पहले एक मीडिया ग्रुप से बातचीत में कहा है कि भारत की जनसंख्या 2020 में 1.38 बिलियन से बढ़कर 2030 तक लगभग 1.5 बिलियन हो जाएगी. दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने के अलावा, संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए प्रति व्यक्ति भोजन सेवन बढ़ाने की भी सख्त जरूरत है. भूख और कुपोषण, वह भी पर्यावरण की दृष्टि से ये तरीका टिकाऊ है.

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