नई दिल्ली. देशभर में नकली घी बनाने और बेचने का धंधा बड़ा होता जा रहा है. हर साल सैकड़ों की संख्या में फैक्ट्रियां सील की जाती हैं, बावजूद इसके नकली घी बाजार में हर समय मौजूद रहता है. नकली घी को बाजार में आने से रोकने के लिए इंडियन डेयरी एसोसिएशन (आईडीए) और गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (अमूल फेड) ने सरकार से घी पर जीएसटी को कम करने की अपील की है. कहा गया है कि अभी घी पर माल और सेवा कर (जीएसटी) 12 फीसदी लगता है. जिसे कम किया जाना चाहिए.
डेयरी क्षेत्र के कारोबारियों की ओर केंद्र सरकार को दिए गए पत्र में कहा है कि यह विडंबना यह है कि आयातित पाम तेल, जो रासायनिक रूप से हाइड्रोजानेटेड से बनता है उस पर घी की तुलना में केवल 5 फीसदी जीएसटी लगता है, जो घी प्राचीन काल से अपने स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है, उसपर 12 फीसदी जीएसटी लगाता है. यही वजह है भारतीय बाजार में घी में मिलावट के लिए पाम तेल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है.
जांच करने की डिमांड की
इंडियन डेयरी एसोसिएशन (आईडीए) और गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (अमूल फेड) के एक प्रतिनिधित्व में कहा गया है कि अगर घी पर जीएसटी कम किया जाता है, तो इससे देश में उपभोक्ताओं और डेयरी किसानों दोनों को फायदा होगा. आईडीए अध्यक्ष आरएस सोढ़ी ने कहा कि भारत के 80 मिलियन डेयरी किसानों द्वारा उत्पादित शुद्ध प्राकृतिक घी पर अधिक कर लगाने का कोई मतलब नहीं है, जबकि इंर्पोटेड चीजों पर कम टैक्स लगता है. इसके अलावा, घी पाम तेल का एक हेल्दी विकल्प है. हमने सरकार से इस मामले की जांच करने और घी पर अन्य खाने वाले तेलों के बराबर कर लगाने का अनुरोध किया है.
घी भारतीय का मुख्य भोजन है
उन्होंने आगे कहा कि सस्ता पाम तेल के कारण छोटे व्यापारियों द्वारा मिलावट की जा रही है और लगभग एक समानांतर व्यवसाय चल रहा है. घी पर जीएसटी कम करके, सरकार कर चोरी से बचा सकती है, किसानों की आय बढ़ा सकती है और साथ ही बड़े पैमाने पर नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है. वहीं मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जीसीएमएमएफ ने केंद्र सरकार के सामने तर्क दिया है कि घी भारतीय घरों में मुख्य भोजन है, जो भारत की सांस्कृतिक और परंपराओं में का एक अहम हिस्सा है.
आम आदमी के लिए होगा किफायती
अमूल ने अपने प्रतिनिधित्व में कहा है, घी पर जीएसटी को 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी की पिछली दर से करने से यह आम आदमी के लिए अधिक किफायती हो जाएगा और इसकी खपत को बढ़ावा मिलेगा जो वनस्पति तेल की तुलना में एक स्वस्थ विकल्प है. इसमें कहा गया है कि इस कदम से डेयरी किसानों को दूध की मांग बढ़ने और उनकी उपज के लिए बेहतर कीमत मिलने का सीधा फायदा होगा.
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