नई दिल्ली. गर्मियों में कुत्ते आक्रामक हो गए हैं. उनका नेचर बदल गया है. सड़क और गलियों में आवारा आतंक इंसानों को आतंकित कर रहा है. ये कुत्ते राहगीरों को दौड़ाकर काट रहे हैं. इसके पीछे की वजह पशु चिकित्सक भोजन की कमी और तेज तापमान को कारण मान रहे हैं. माना जा रहा है कि भीषण गर्मी होने के कारण कुत्ते ठंडक वाली जगह पर बैठकर अपना समय काटते हैं. रात में हल्की ठंडक होने पर वे झुंड में सड़कों पर चलते हैं. दिनभर की गर्मी व भोजन नहीं मिलने से आने-जाने वालों को दौड़ाते हैं. गर्मी के इस सीजन में कुत्तों के काटने की संख्या भी बढ़ जाती है. कुत्तों के काटने से रेबीज फैलता है. आइये आपको रेबीज की जानकारी देते हैं. ये बेहद खतरनाक होता है, इसलिए इसके प्रति सावधानी बरतने की जरूरत है.
रेबीज सबसे घातक वायरल जूनोटिक रोगों में से एक है, जो इंसानों सहित गर्म खून वाले पशुओं बेहद ही प्रभावित करता है. ये इंसानों और जानवरों के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है. ये रेबडोविरिडी परिवार के लाइसावायरस जीनस के न्यूरोट्रोपिक वायरस के कारण होता है. डॉग रेबीज संक्रमण के मुख्य स्रोत हैं और मानव रेबीज के 99 फीसदी मामले संक्रमित कुत्तों के काटने से होते हैं. इंसानों और जानवरों में लगभग 100 फीसदी मृत्यु दर है. वहीं हर साल करीब साठ हजार लोगों की मौत रेबीज से होती है.
रेबीज का प्रभावी इलाज नहींः डॉग एक्सपर्ट का कहना है कि ये बीमारी बेहद खतरनाक इसलिए है कि एक बार लक्षण विकसित हो जाए तो इसके बाद रेबीज का कोई प्रभावी उपचार नहीं है. ये रोग हमेशा घातक होता है. हालांकि कुत्तों की वजह से होने वाले रेबीज के मामले 100 फीसदी तक रोका जा सकता है. इतना ही नहीं कुत्तों को टीके लगाए जाएं तो रेबीज को प्रभावी ढंग से खत्म किया जा सकता है. ये बीमारी संक्रामक लार के संपर्क में आने से, संक्रमित कुत्तों के काटने से होती है.
क्लीनिकल लक्षण क्या-क्या हैंः इंफेक्शन होने और पहली बार लक्षण दिखाई देने के बीच का समय 2-3 महीने तक हो सकता है या फिर 3 सप्ताह से 25 वर्ष तक भी हो सकता है. इस बीमारी में शुरू में सामान्य लक्षण जैसे कमजोरी, बुखार, सिरदर्द, उल्टी होती है. वहीं काटने की जगह पर नसों का दर्द या खुजली, पानी से भय लगना भी हो सकता है. वहीं इस दौरान चिंता व भ्रम की अधिकता होती है. इंसानों को नींद भी नहीं आती है. अक्सर 3 सप्ताह के भीतर मौत भी हो जाती है.
पशुओं में लक्षणः पशुओं में इसके लक्षण की बात करें तो उग्र या साइलेंट हो जाते हैं. जीवित और निर्जीव दोनों वस्तुओं को काटने लगते हैं. वहीं अत्यधिक लार गिरना, कमजोरी, दौरे, फालिज, आक्रामकता, निगलने में कठिनाई होती है. लक्षण दिखाई देने पर 10 दिनों के भीतर पशु मर भी जाते हैं. रेबीज के लिए डब्लूएचओ और ओआईई टेस्ट हैं. डायरेक्ट फ्लोरोसेंट एंटीबॉडी टेस्ट कराया जाता है.
इस तरह करें कंट्रोलः आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करना बेहद ही जरूरी कदम है. वहीं इंसानों और कुत्तों में रेबीज को नियंत्रित करने के लिए क्षेत्रों में कुत्तों का सामूहिक टीकाकरण कराना चाहिए. 70 फीसदी कुत्तों का टीकाकरण करने से स्थानिक क्षेत्र से रेबीज का खत्म किया जा सकता है. पालतू कुत्तों का वार्षिक टीकाकरण करवाएं. पालतू कुत्तों व बिल्लियों को जंगली जानवरों से दूर रखें. कुत्तों में प्रीएक्स्पोज़र टीकाकरण कैसे करता है इसके लिए हम आपको इसकी जानकारी देते हैं. पहला टीकाकरण 3 माह की उम्र में करना जरूरी है. वही दूसरा टीकाकरण जब कुत्ता 6 महीने का हो जाए तब कराएं. इसके बाद 1 वर्ष में टीकाकरण जरूर कराएं.
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