नई दिल्ली. आजकल मछली पालन करके खूब कमाई की जा सकती है. नई तकनीक के तौर पर केज फिश फार्मिंग भी हो रही है. बहुत से किसान केज फार्मिंग के जरिए हर साल लाखों रुपये का मुनाफा कमाते हैं. केज तकनीक मछली पालन करने के कई फायदे हैं. इससे मछलियों में बीमारियां कम होने की संभावना होती है. क्योंकि बाहरी मछलियों से संपर्क नहीं होता और संक्रमण का खतरा भी कम होता है. मछली पालक अपनी जरूरत और मांग के हिसाब से केज से मछली निकाल सकते हैं, जबकि जरूरत नहीं होने पर मछलियों को केज में छोड़ा जा सकता है. सरकार भी मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है. ताकि ज्यादा से ज्यादा किस मछली पालन में आगे आएं और उनकी इनकम डबल हो सके.
अगर आप भी केज सिस्टम से मछलियों की फार्मिंग शुरू करना चाहते हैं तो यहां कुछ जरूरी बातों को हम बताने जा रहे हैं, जिसे ध्यान से पढ़ें ताकि इस तरह से मछली पालन करके आपको कमाई हो नुकसान न उठाना पड़े. केज के जरिए मछली पालन से आज लाखों की कमाई हो रही है, मछलियों का प्रोडेक्शन भी बढ़िया हो रहा है.
केज मछली पालन का मैनेजमेंट: केज में जल की गुणवत्ता की जांच बराबर करते रहना चाहिए. मुख्यतः पानी में आक्सीज की मात्रा, पीएच, अमोनिया आदि की जांच करना बेहद जरूरी होता है. हर 15 दिन में एक बार ब्रश से जाल को साफ करना चाहिए ताकि इसमें काई आदि न जम सके. अगर कोई मरी हुई मछली हो तो उसे हटा दिया जाना चाहिए. जाल के धागे और मेस की जांच बीच-बीच में करनी चाहिए. अगर कोई मेस लूज
हो या कट गया हो तो उसकी मरम्मत कर लेना चाहिए. मछलियों के स्वास्थ्य का निरीक्षण निरंतर करनी चाहिए. अगर कहीं संक्रमण, घाव इत्यादि दिखे तो उसका तुरंत उपचार करना चाहिए. नियमित रूप से मछलियों की ग्रोथ की जांच कर पूरक आहार की मांग को संतुलित करनी चाहिए.
अच्छा मिलता है उत्पादन: आमतौर पर 6×4×4 मीटर के 56 पिजड़ों में पयासी (पैंगेसिअस) मछलियां औसतन प्रति पिजड़ा पांच टन उत्पादित की गईं थीं. यह एक बड़ी उपलब्धि थी. क्योंकि एक हेक्टेयर के तालाब से उन्नत विधि अपनाने पर उत्पादन का यह स्तर मिलता है. इसी तरह बढ़ते जलसंकट को दृष्टिगत कर आरएएस सिस्टम को बढ़ावा दिया जा रहा है. जिसमें पानी के रीसाइकलिंग से सीमित इनडोर स्थल में सीमेंट या सर्कुलर टैंक में बड़ी मात्रा में मछली उत्पादित की जाती है.
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