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Fisheries: समुद्र में प्रदूषण को कम करने के लिए इस तरह काम कर रही है सरकार, की जा रही है मॉनीटरिंग

‘Need national guideline on eco-labeling of marine fishery resources’
Symbolic photo. livestock animal news

नई दिल्ली. भारत सरकार की ओर से बनाई गई राष्ट्रीय समुद्री मात्स्यिकी नीति, 2017, मात्स्यिकी संसाधनों के संरक्षण और इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देती है. इस नीति में माइक्रो-प्लास्टिक और नेट जिसमें समुद्र में छूट गए अथवा फेंक दिए गए मछली पकड़ने के जाल सहित समुद्री पर्यावरण और प्रदूषण के मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है. यह नीति भूमि और समुद्र-आधारित सोर्स से प्रदूषणों को नियंत्रित करने के लिए रेगूलेटरी सिस्टम का समर्थन करती है, जिसे प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है और प्रदूषण संबंधी पहलुओं के लिए इकोसिस्टम की मॉनिटॉरिंग की जा सकती है.

समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण, विशेष रूप से मात्स्यिकी और समुद्री क्षेत्रों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट और रेग्लिटर प्रोजेक्ट जैसे वैश्विक प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है. ये दोनों प्रोजेक्ट इंटरनेशनल मैरीटाईम ओरगेनाईजेशन (आईएमओ) और संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ओरगेनाईजेशन (यूएन-एफएओ) द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जाता है.

मरीन प्लास्टिक को रोकने में कारगर हैं प्रोजेक्ट्स
ये प्रोजेक्ट्स समुद्र आधारित सोर्सेज से मरीन प्लास्टिक लिटर (एमपीएल) को रोकने और कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं. जिसमें छोड़े गए, खोए हुए या त्यागे गए फिशिंग गियर (एएलडीएफजी) और जहाजों से निकलने वाले कचरे के समाधान पर जोर दिया जाता है. ग्लोलिटर प्रोजेक्ट में लीड पार्टनर कंट्री (एलपीसी) के रूप में, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने अपनी नेशनल एक्शन प्लांन (एनाएपी) प्रकाशित की है. जिसमें समुद्र आधारित स्रोतों से मरीन प्लास्टिक कूड़े को कम करने के लिए रणनीतिक उपायों की रूपरेखा दी गई है. विनाशकारी फिशिंग के मुद्दों को संबोधित करने के लिए, भारत सरकार ने ईईजेड क्षेत्र में पेयर या बुल ट्रॉलिंग और एलईडी या आर्टिफिशियल लाइट के उपयोग जैसे विनाशकारी फिशिंग पद्धतियों पर प्रतिबंध लगा दिया है.

आर्टिफिशियल रीफ्स लगाया जा रहा है
वहीं इस क्षेत्र की लंबे समय तक उपयोगिता सुनिश्चित करने और जलवायु परिवर्तन, महत्वपूर्ण आवास के संरक्षण और बहाली से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए, मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार राज्य सरकारों और पर्यावरण एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही है. इन प्रयासों में भारत के पूरे समुद्री तट पर आर्टिफिशियल रीफ्स की स्थापना, सी रैंचिंग, सी वीड फार्मिंग को बढ़ावा देना, प्रमुख फिश ब्रीडिंग पीरियड के दौरान 61 दिनों के लिए यूनिफार्म फिशिंग बैन का कार्यान्वयन और कछुओं के संरक्षण के लिए ट्रॉल जाल में टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस (टीडीएस) की स्थापना आदि शामिल हैं.

100 मछुआरों की गई है पहचान
इसके अलावा, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी किया जाता है कि वे जूविनाइल फिशिंग को रोकने के उपाय करें, जिसमें उन्हें अपने समुद्री मात्स्यिकी विनियमन अधिनियमों (एमएफआरए) के तहत जाल आकार विनियमन और फिश के न्यूनतम लीगल साइज को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ताकि सतत (सस्टेनेबल) और जिम्मेदार फिशिंग प्रैक्टिस को सुनिश्चित किया जा सके. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित तटीय समुदायों की इकोनॉमिक रेसीलिएंस बढ़ाने के लिए, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने क्लाइमेंट रेसीलिंएट कोस्टल फिशरमैन विललेज (सीआरसीएफवी) के रूप में समुद्र तट के करीब स्थित 100 तटीय मछुआरा गांवों की पहचान की है.

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