नई दिल्ली. मत्स्यपालन विभाग के सचिव डॉ. अभिलक्ष लिखी की अध्यक्षता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में खारे जल में झींगापालन की समीक्षा को लेकर एक बैठक हुई. इस बैठक में झींगा उत्पादन डबल करने की सरकारी कोशिशों पर विचार विर्मश हुआ. बैठक के दौरान विभाग की तरफ से जलीय कृषि के लिए संभावित खारे भूमि संसाधनों के इस्तेमाल की रणनीति बनाने के लिए राज्यों, आईसीएआर और अन्य एजेंसियों के सहयोग के संबंधित प्रयासोज पर जोर दिया गया. इस तरफ भी इशारा किया गया कि जहां खारे भूमि संसाधनों, जो कृषि के लिए उपयुक्त नहीं हैं, उसकी क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिए.वहीं इन तमाम राज्यों में जिन 25 जिलों की पहचान की गई है वहा रोजगार और आजीविका को लेकर लोगों को जागरुक करने की बात कही गई. बैठक में कहा गया है कि झींगापालन को अपनाने के साथ झींगा के उपभोग भी किया जाए. वहीं चार राज्य यह तय करेंगे कि उनके खारा प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए परियोजना संबंधी प्रस्तावों को पीएमएमएसवाई के तहत मदद के लिए अगले वर्ष की वार्षिक कार्य योजना में शामिल किया जाए.
राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किए जाने पर जोर
चर्चा हुई कि चारों राज्यों में लवणीय भूमि जलीय कृषि के लिए कई परेशानिया हैं. इन समस्याओं का समाधान करने के लिए आईसीएआर, राज्य मत्स्य पालन विभाग और अन्य एजेंसियों की सहायता से देश के उत्तरी हिस्से में झींगा की खपत को बढ़ावा देने के लिए जरूरी अवेयनेस कार्यक्रम चलाए. ताकि चिन्हित 25 जिलों में संभावित सामूहिक और सांस्कृतिक क्षेत्र का सर्वेक्षण हो सके. बैठक में तय हुआ कि आईसीएआर-सीआईएफई रोहतक केंद्र एवं राज्य मत्स्य पालन विभागों के बीच आपसी तालमेल से मत्स्य पालकों और उद्यमियों के लिए आईसीएआर-सीआईएफई रोहतक केंद्र तथा राजस्थान के चांदघोटी केवीके में कार्यशालाएं व प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा सकता है. वहीं ताजे पानी/अंतर्देशीय तालाबों में सफेद झींगों के पालन के लिए मौजूदा दिशानिर्देशों की समीक्षा करने पर भी चर्चा हुई. जबकि आईसीएआर-सीआईएफई, रोहतक में उपलब्ध सुविधाओं को और बढ़ाने के लिए एक रोडमैप तैयार करने तथा टिकाऊपन और उत्तर भारतीय राज्यों में लवणीय जलीय कृषि के सतत विकास के लिए रणनीति तैयार करने के मकसद के तहत एक राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किए जाने पर जोर दिया गया.
1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जलीय कृषि के अंतर्गत लाया जाए.
गौरतलब है कि भारत दुनिया का पहला झींगा पालक उत्पादक देश है. भारत के कुल समुद्री भोजन निर्यात में झींगे का योगदान 65% से अधिक है. जबकि खारे पानी की जलीय कृषि और लवणता प्रभावित क्षेत्रों में झींगा जलीय कृषि की व्यापक संभावनाएं भी हैं. भारत में खारे पानी वाले लगभग 1.2 मिलियन हेक्टेयर संभावित क्षेत्र हैं. इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में 1.24 मिलियन हेक्टेयर नमक से प्रभावित मिट्टी उपलब्ध है. आईसीएआर-सीआईबीए की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 8.62 मिलियन हेक्टेयर अंतर्देशीय लवणीय मिट्टी उपलब्ध है, लेकिन सिर्फ 1.28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही खेती होती है. जबकि सरकार का लक्ष्य है कि अतिरिक्त 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को जलीय कृषि के अंतर्गत लाया जाए.
देश में झींगा की डिमांड बढ़ाने की कवायद
दरअसल, लवणता से प्रभावित क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते हैं पर इन क्षेत्रों को जलीय कृषि क्षेत्रों में तब्दील किया जा सकता है. हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों में संभावित अंतर्देशीय लवणीय क्षेत्रों को देखते हुए मत्स्य पालन विभाग ने सचिव स्तर पर समीक्षा बैठक की. यहां आपको ये भी बता दें कि भारत में उत्पादित होने वाले गैर समुंद्री झींगा की इंटरनेशनल लेवल पर बहुत डिमांड है. खासतौर पर अमेरिका चीन तो इस झींगा के दीवाने हैं. भारत की कोशिश है कि देश में भी इस झींगा की डिमांड को बढ़ाया जाए. बैठक में मत्स्य पालन विभाग के संयुक्त सचिव श्री सागर मेहरा, उपरोक्त चार राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी और जिला मत्स्य अधिकारी, आईसीएआर के डीडीजी (मत्स्य विज्ञान) डॉ. जे. के. जेना, आईसीएआर-सीआईएफई मुंबई के निदेशक डॉ. रविशंकर, तटीय जलकृषि प्राधिकरण चेन्नई के सचिव डॉ. वसंत कृपा, डीओएफ के वरिष्ठ अधिकारी और आईसीएआर के वैज्ञानिक भी इस बैठक में शामिल हुए.
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