नई दिल्ली. बकरियों को फीताकृमि संक्रमण होता है. जिससे बकरियों का वजन घट जाता है और कई तरह की दिक्कतें आती हैं. इस बीमारी से भी वक्त पर बचाव जरूरी है. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) की मानें तो ये बीमारी बकरियों के बच्चों यानि मेमनों को ज्यादा प्रभावित करती है. इसलिए बच्चों का ज्यादा ख्याल रखना चाहिए. इसके अलावा IVRI की ओर से लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) को इस बीमारी से जुड़ी कई अहम जानकारी दी गई है. जिसका जानना बकरी पालक के लिए बेहद ही जरूरी है.
सबसे पहले तो ये जान लें कि फीताकृमि संक्रमण क्या है. बता दें कि इनको टेपवर्म भी कहते हैं. ये उभय लिंगी कीड़े होते हैं, जिसमें नर और मादा दोनों होते हें. ये मोनीजिया कृमि समूह में आते हैं.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
ये कीड़े खासतौर पर छोटे बच्चे (मेंमनों) को ज्यादा प्रभावित करते हैं. इनके संक्रमण से आंतों से खाने वाले पदार्थों का अवशोषण कम हो जाता है.
इससे कब्जियत और दस्त हो जाते हैं. बकरियों की मेंगनी के साथ फीता कृमि के टुकड़े बाहर आने लगते हैं व संक्रमण फैलने लगता है.
बता दें कि पशुओं में फीताकृमि संक्रमण से बौनापन, पेट फूलना, दस्त, कब्ज, वजन घटना, और गंभीर मामलों में आंतों में रुकावट का भी मामला सामने आता है.
कई बार कीड़े आंतरिक अंगों में चोट पहुंचा देते हैं. खासकर कमजोर जानवरों में ये जयादा गंभीर रूप से होते हैं.
कैसे करें इलाज
IVRI के एक्सर्प के मुताबिक पशुओं में फीताकृमि के संक्रमण का इलाज एल्बेंडाजोल या प्राजिक्वांटेल जैसी कृमिनाशक दवाओं से किया जाता है.
उपचार के तहत फेनबेन्डोजाल व प्राजीक्विन्टल, फेन्टास प्लस की गोली (1 गोली प्रति 30 किलो शरीर भार पर) खिलाने से इनसे छुटकारा मिल जाता है.
एक्सपर्ट के मुताबिक दवाओं से वयस्क कृमि मर जाते हैं और मल के साथ बाहर निकल जाते हैं.
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