नई दिल्ली. भारत सरकार के त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम के तहत आईवीएफ भ्रूण प्रत्यारोपण विधि से मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर, एनडीडीबी को एनडीडीबी और एनडीडीबी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड (आईआईएल) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित संस्कृति मीडिया का उपयोग करके उत्पादित आईवीएफ भ्रूण से पहली मादा बछड़े के जन्म हुआ है. आईआईएल की ओर से कहा गया है कि इस बात की घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि पहली बछिया का सफल जन्म कराया गया है और वो बिल्कु स्वस्थ भी है. गोजातीय आईवीएफ तकनीक के क्षेत्र में इस उपलब्धि को मील का पत्थर बताया जा रहा है वहीं आत्मनिर्भर भारत की दिशा में इसे एक मजबूत कदम भी बताया जा रहा है.
पहले किया गया परीक्षण
एक्सपर्ट का कहना है कि इस तकनीक से आईवीएफ भ्रूण उत्पादन की लागत में बहुत कमी आने की उम्मीद की जा रही है. जिसका सीधा फायदा डेयरी किसानों को मिलेगा. उनके लिए डेयरी कारोबार और ज्यादा किफायती हो जाएगा. गौरतलब है कि गर्भधारण स्थापित करने से पहले, स्वदेशी रूप से विकसित संस्कृति मीडिया का सावधानी के साथ परीक्षण किया गया था. पहले, आईवीएफ भ्रूण पूरी तरह से आयातित कल्चर मीडिया का उपयोग करके उत्पादित किए जाते थे. इससे पहले महाराष्ट्र में सांगली के बागनी गांव में रहने वाले सुशील खोट के घर पर आईवीएफ एंब्रियो ट्रांसप्लांट विधि से एक बछिया का जन्म हुआ था. ये मामला जुलाई 2023 का है.
दूध देने की क्षमता बढ़ जाएगी
इसका जन्म भारत सरकार के पशुपालन एवं डेरी विभाग की ओर से चलाए जा रहे त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम के तहत कराया गया था. एचडीबी के फील्ड ऑपरेशन चलाने वाली एचडीबी डेरी सर्विसेज ने इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2022 के सितंबर महीने में की थी. 9 महीने के प्रयासों से सफल आईवीएफ तकनीक से जुलाई 2023 तक 13 स्वस्थ मादाओं का जन्म कराया गया था. आईवीएफ भ्रूण से जन्मी बछिया जब दूध देने की स्थिति में आएगी तो 35 से 40 लीटर दूध उत्पादन 1 दिन में कर सकेगी. जबकि डेरी किसानों को वर्तमान में गोवंश की औसत दूध 20 लीटर तक ही सीमित है.
तकनीक का सबसे बड़ा फायदा
संस्थान का कहना है कि इस तकनीक से जो भ्रूण तैयार होते हैं, उसमें 90 फ़ीसदी मादा बच्चे पैदा होने की संभावना होती है. भ्रूण की नस्ल किससान चुनते हैं और छह गोवंश और एक भैंस की नस्ल के जेंडर सॉर्टेड आईवीएफ गन से इस तरह से उपयोग में लिए गए हैं कि जन्म लेने वाले बच्चों में से 90% मादा ही पैदा हों. बच्चों में सरोगेट के कोई भी गुण नहीं होंगे. गिर और साहीवाल प्रजातियों की गायों में दूध के उत्पादन की क्षमता 15 से 20 लीटर और मुर्रा भैंस से 20 लीटर प्रतिदिन दूध उत्पादन बढ़ सकता है.
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