नई दिल्ली. साइलेज उस चीज को कहते हैं कि जिसे अधिक नमी वाले चारे को नियंत्रित फर्मेंटेशन मेथड द्वारा तैयार किया जाता है. इसमें हरे चारे के पोषक तत्त्वों की उपलब्धता बनी रहती है. साइलेज बनाने में जिस चीज प्रयोग किया जाता है उन्हें साइलोपिट कहते हैं. जब हरे चारे के पौधों को हवा की गैरमौजूदगी में फर्मेंटेशन किया जाता है तो लैक्टिक अम्ल पैदा होता है. यह अम्ल हरे चारे को अधिक समय तक सुरक्षित रखने में मददगार होता है.
वर्षा ऋतु में जलवायु के उपयुक्त होने के फलस्वरूप हरे चारे और घासों का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है. जिसका उपभोग उस समयावधि में पशुओं द्वारा संभव नहीं होता है. ऐसी स्थिति में अतिरिक्त हरे चारे को उन दिनों के लिए संरक्षित कर सकते हैं जब इनकी पैदावार एवं आपूर्ति कम होती है. चारा संरक्षण विधियों द्वारा हरे चारे की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सकता है जिसके द्वारा अच्छा पशु उत्पादन नवम्बर-दिसम्बर और अप्रैल-जून के महीनों में भी प्राप्त कर सकते हैं. जब हरे चारे की अत्याधिक कमी रहती है.
इसलिए बनाते हैं साइलेज: साइलेज एवं हे बनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि जिस मौसम में हरा-चारा अधिक मात्रा में प्राप्त होता है, उस मौसम में अतिरिक्त हरे चारे को सुरक्षित रखा जाए. दुधारू या बढ़वार पशुओं को तब तक खिलाया जाए जब हरा चारा कम मात्रा में प्राप्त होता है. इस प्रकार साइलेज एवं हे को हम चारे के अकाल के खिलाफ बीमा भी कहते हैं. इसका चारा बैंक के रूप में प्रयोग कर सकते हैं. इस प्रकार हरे चारे की कमी के मौसम में हरे चारे के स्थान पर साइलेज एवं हे को खिलाकर दुग्ध उत्पादन की स्थिरता को बनाये रखा जा सकता है.
साइलेज: साइलेज उस पदार्थ को कहते हैं जिसमें अधिक नमी वाले चारे को नियंत्रित किण्वन क्रिया द्वारा उत्पन्न किया जाता है. हरे चारे के पोषक तत्वों की कमी कम से कम होती है. साइलेज विधि में जिन घरौंदों का प्रयोग साइलेज बनाने के लिए करते हैं उन्हें साइलो कहते हैं. जब हरे चारे के पौधे हवा की अनुपस्थिति में किण्वीकृत होते हैं तो लैक्टिक अम्ल पैदा होता है. यह अम्ल हरे चारे को अधिक समय तक सुरक्षित रखने में सहायता करता है. साइलेज बनाने और उसके सुरक्षित रख रखाव के लिए खाई, गढ्ढों या जमीन के ऊपर बने साइलों में भरा जाता है. किण्वीकरण का नियंत्रण या तो लैक्टिक
अम्ल उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को बढ़ावा देकर किया जाता है या फिर हरे-चारे में कमजोर अम्ल के घोल को सीधा मिलाया जाता है या फिर सोडियम मेटा बाई सल्फाइट जैसे परिरक्षक मिलाकर किया जाता है.
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