नई दिल्ली. भले ही बारिश का सीजन चल रहा है लेकिन फिर भी गर्मी है. जिस दिन बारिश होती है उस दिन तो मौसम अच्छा हो जाता है लेकिन दूध निकलते ही गर्मी होने लग जाती है. गर्मी का असर सिर्फ इंसानों पर ही नहीं बल्कि जानवरों पर भी पड़ता है. इस वजह से पशुओं की देखभाल की ज्यादा जरूरत भी पड़ती है. गर्मी में पशु तनाव में आ जाते हैं, जिससे उनके पाचन तंत्र, दूध उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है. जबकि नवजात पशुओं की देखभाल में थोड़ी सी भी लापरवाही करने पर उनके शारीरिक विकास, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता, उत्पादन क्षमता पर भी असर पड़ता है.
इसलिए जरूरी है कि पशुओं का ख्याल रखा जाए. पशुओं को गर्मी से बचाया जाए ताकि इसका असर दूध उत्पादन पर न पड़े. क्योंकि पशुओं के दूध उत्पादन पर असर पड़ता है तो फिर पशुनपालकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. उन्हें डेयरी कारोबार में नुकसान उठाना पड़ जाता है.
नहलाएं और साफ भी रखें
एक्सपर्ट कहते हैं कि गर्मियों में पशुओं पालते समय सावधानी न बरती जाए तो पशुओं द्वारा खाए जाने वाले सूखे चारे की मात्रा 10 से 30 फीसदी और दूध उत्पादन क्षमता 10 फीसदी तक कम हो जाती है. ज्यादा गर्मी के कारण ऑक्सीडेटिव तनाव की वजह से पशुओं की रोगों से लड़ने की आंतरिक क्षमता प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. वह आने वाले बरसात के मौसम में कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. जिसकी वजह से उत्पादन और प्रजनन क्षमता में गिरावट होती है. इसलिए जरूरी है कि गर्मी के मौसम में पशुओं को कम से कम दो बार जरूर नहलाएं और साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें.
गर्मी के दिनों ये भी करें
जबकि वातावरण का तापमान अधिक होने पर पशुओं के शरीर में दो या तीन बार ठंडे पानी के छिलकाव कर दें. यदि संभव हो तो भैंसों को तालाब पोखरों पर ले जाएं. क्योंकि यह साबित हो चुका है कि दोपहर के समय यदि पशुओं को ठंडे पानी से नहलाया जाए तो उनकी उत्पादन और प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है. इसके अलावा पशुओं के आवास के लिए एक साफ सुथरा हवादार शेड होना चाहिए, जिसमें ठोस बिना फिसलन वाले फर्श पशु के मल और पानी की निकास के लिए हों. पशुपाला की छत हल्की खुली होनी चाहिए. ताकि गर्मी में पशुओं को ज्यादा गर्मी ना लगे. एसबेस्टस शीट का इस्तेमाल किया जा सकता है. ज्यादा गर्मी के दिनों में छत पर घास और छप्पर आदि की 6 इंच मोटी परत बिछाई जा सकती है. या परत गर्मी रोकने का काम करती है.
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