नई दिल्ली. जैसलमेर की भाटिया बगेची धर्मशाला हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों से आने वाले पोंग डैम विस्थापितों का ठहरने का केंद्र बनी हुई है. या फिर यूं कहा जाए कि भाटिया बगेची इन लोगों की पहली पसंद है. यहां पर बीते दिन बहुत से लोग आए, जिनसे बातचीत हुई तो उन्होंने अपने दर्द को बंया किया. लोगों ने बताया कि पोंग डैम का निर्माण कराया गया था तब 1972 में डैम के केचमेंट में करीब 1500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के लोगो को वहां से हटाकर उन्हें अन्य स्थान पर खेती करने के लिए पानी और रहने के लिए बस्ती बसाकर मकान बनाकर देने का वायदा किया गया था. विस्थापना के बाद वायदे करने वाली सरकार बदल गई. हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मे रहने वाले लोग बेघर हो गए. हालात ये हैं कि यहां पर न तो पशुओं के लिए हरा चारा है और न ही पीने के लिए पानी. अब ऐसे में रेतीले टीलों में कैसे जीवन यापन हो, इसे लेकर लोग सरकार से लगातार मांग करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही.
विस्थापितो को इंदिरा गांधी नहर परियोजना में जमीन आवंटन करने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत के साथ में समझौता किया गया. इस समझौते के आधार पर इंदिरा गांधी नहर परियोजना के अंतर्गत जमीन आवंटन करने का निर्णय लिया गया लेकिन पोंग डैम विस्थापितो से जमीन आवंटन में भेदभाव किया गया. इन्हे सुदूर गंगानगर से पाकिस्तान बॉर्डर के किनारे रेतीले टीलों में बसाना शुरू किया गया.जैसलमेर में पाकिस्तान बॉर्डर पर आवंटित भूमि को देखने के लिए आए हरिराम ने बताया कि जब हमारे पुरखों ने सोना उगलने वाली जमीन दी है लेकिन उसके बदले हमे बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं मिला है. अब ऐसे में हम कहां जाएं और इन टीलों में कैसे रहें. यहां पर न तो हमारे अजीविका के कोई साधन हैं और न ही पशुओं के लिए चारे-पानी की व्यवस्था है जबकि इन इलाकों में पशु ही अजीविका का मुख्य साधन हैं.
पाकिस्तानी चारा जाते थे हमारे खेतों में गाय
नहर परियोजना के निर्माण के शुरुआती समय में गंगानगर पाकिस्तान बॉर्डर पर हिमाचली लोग जब खेती करने गए थे तब गंगानगर पाकिस्तान बॉर्डर पर तार बंदी नही होती थी. ऐसे में रात को पाकिस्तानी अपनी गाएं इनके मुरब्बो में छोड़कर खेती बाड़ी चौपट कर देते थे. खेती बाड़ी करने के बाद जब उन्हें हिमाचल प्रदेश अपने घर जाना पड़ता था तो पीछे खाली पड़ी जमीन पर गिरदावरी वालो ने आकर नेगेटिव रिपोर्ट लिख कर अनेक मुरब्बो को खारिज करवा दिया था. कुछ लोग परेशान हो बर्बाद हो कर वापस चले गए और कुछ खारिज आवंटन मामले में अपील की तो बहाली में चालीस साल लग गए और जो लोग अपील नहीं कर पाए थे तो लुट पिट कर बैठ गए.
विस्थापितों को मिले खेती वाली जमीन, पानी का भी हो इंतजाम
जैसलमेर में करीब सात-आठ हजार लोग पोंग डैम विस्थापित निवास कर रहे हैं. इन सभी की मांग है कि सरकार उन्हें एक ही जगह पर बसाए. जिन स्थानों पर हमे मुरब्बे आवंटित किए गए हैं वहां पर सिर्फ रेतीले टीले है न तो वहां पर किसी प्रकार के नहरी पानी के लिए नाले बने हुए हैं और न ही हमे पीने के लिए पानी हैं. ऐसे में पानी नहीं होगा तो लोग कैसे जीवन यापन करेंगे और अपने पशुओं को पालेंगे. आवागमन के लिए कोई सड़क है और न ही किसी प्रकार का साधन मिलता है. ऐसे में हमारी जिंदगी तो बर्बाद हो ही गई है और हमारे बच्चों का भविष्य भी अंधकार मय दिखाई दे रहा है. बरसो से राजस्थान में नहरी जमीन आवंटन करने पर रोक लगी हुई है, जोकि खोलना चाहिए ताकि पोंग डैम विस्थापन से वंचित रह गए लोगो के साथ में न्याय हो सके. जहां पर हमें मुरब्बे आवंटित किए गए हैं वहां पर अतिशीघ्र मूलभूत सुविधाओं के साथ ही खेती करने के लिए पानी उपलब्ध कराया जाए.
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