नई दिल्ली. बीमारी तो किसी के लिए सही नहीं होती है. चाहे वो इंसान हो या फिर पशु—पक्षी. खासतौर पर बर्ड में बीमारी होने का मतलब ये है कि इससे इंसान भी प्रभावित हो सकते हैं. इसमें सबसे खतरनाक बीमारी में से एक विषाणु जनित रोग बर्ड फ्लू है. जिसके चलते आम इंसानों को भी खतरा होता है. वहीं इस बीमारी के कारण पोल्ट्री फार्मिंग का बिजनेस एक झटके में अर्श से फर्श पर आ जाता है. इसलिए इसके बारे में पोल्ट्री फार्मर्स को जानकारी होनी चाहिए कि ये बीमारी किस तरह से उनके कारोबार को नुकसान पहुंचा सकती है.
यह इन्फ्लूऐन्जा ए वायरस से होने वाला पक्षियों का अति संक्रामक रोग है. इससे पक्षियों में 100 फीसद तक मृत्यु दर हो सकती है. यह बीमारी मुख्यतः मुर्गियों एवं टर्की में होती है. बत्तख, वाटर फाउल व अन्य प्रवासी पक्षियों में भी इन्फ्लूऐन्जा वायरस का संक्रमण होने से ये रोग फैलाते हैं.
रोग कैसे फैलता है
इस रोग के वायरस रोगी पक्षी की लार, नाक, आंख के स्राव व बींट में पाया जाता है.
रोगी पक्षी के सीधे सम्पर्क से अथवा संक्रमित बींट व नाक, आंख के स्राव के संपर्क में आये व्यक्ति, आहार, पानी, उपकरणों आदि से यह रोग फैलता है.
रोग के संक्रमण पर 3-5 दिन में लक्षण दिखाई देते हैं.
रोग के लक्षण
अचानक अधिक संख्या में पक्षियों की मृत्यु (100 परसेंट तक).
पक्षी सुस्त होकर खाना पीना बन्द कर देते हैं.
अंडा उत्पादन में अत्यधिक कमी देखी जाती है.
पक्षी के तीव्र जुखाम व नासाछिद्र व आँख से स्राव, पक्षी के सिर व गर्दन पर सूजन आना.
कलंगी व लटकन पर सूजन एवं नीलापन आ जाता है.
उपचार के बारे में जानें यहां
बर्ड फ्लू रोग का उपचार नहीं है, इसलिए बचाव ही उपचार है.
बर्ड फ्लू होने की संभावना की स्थिति में पोल्ट्री फार्मर्स क्या करें?
रोग की जांच के लिए पशु चिकित्सक के द्वारा सैम्पल भिजवायें.
जाँच रिपोर्ट आने तक फार्म पर किसी भी व्यक्ति (पोल्ट्री पालक के अतिरिक्त), वाहन आदि को प्रवेश न करने दें.
पोल्ट्री फार्म पर रोग की संभावना होने पर पक्षियों को क्वारन्टाइन में रखना चाहिये.
फार्म से पक्षी, अण्डे, लिटर, उपकरण आदि के आने—जाने व बेचने पर रोक लगाएं.
जैव सुरक्षा व कीटाणु नाशन के सभी उपाय करें.
फार्म पर कार्य करने वाले व्यक्ति को मास्क डिस्पोजेबल कपड़े, शू-कवर, ग्लब्ज आदि पहनकर कार्य करना चाहिए.
काम बाद फार्म के बाहर निकलने पर इन्हें निस्तारित कर देना चाहिए. स्वयं की सफाई और कीटाणुनाशन प्रक्रिया का ध्यान रखना चाहिये.
रोग की पुष्टि होने पर पशुपालन विभाग के निर्देशानुसार सभी पक्षियों, अण्डों, लिटर, दाने आदि का निस्तारण कराकर पूर्ण कीटाणुनाशक प्रक्रिया को अपनायें।
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