नई दिल्ली. बकरी जिसे गरीबों का एटीएम भी कहा गया है. एक बहुत ही सहनशील और जानवर है जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी खुद को ढाल लेती है. बकरी विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के पौधों की पत्तियों को खाती है और किसी भी अन्य पशुधन की तुलना में जंगल-झाड़ी में चर कर पेट भर लेती है. इसके चरने के विशेष आदत के कारण यह सुखे की परिस्थिति में भी गुजारा कर लेती है. यही वजह है कि अनउपजाऊ, बंजर और परती भूमि जहाँ कृषि नहीं हो सकता वहां बकरीपालन आसानी से किया जा सकता है.
बकरी पालन अन्य कृषि और दुग्ध उत्पादन वाले व्यावसाय की तुलना में कम लागत, सहज तकनीक, कम खर्च तथा कम जोखिम वाला व्यावसाय है. इसके साथ-साथ बकरियों का बीमा कराकर जोखिम को और कम किया जा सकता है. इस व्यावसाय को 5-10 बकरियों के साथ शुरू किया जा सकता है और एक से डेढ़ साल में आमदनी आने लगती है. इसलिए यह व्यावसाय कम जमीन तथा भूमिहीन श्रमिकों के लिए एक अच्छा है. इस को महिला भी बहुत अच्छी तरह से संभाल सकती है और वे अपने घर के आमदनी को बढ़ा सकती है.
किन नस्लों की बकरी पालना है फायदेमंद
पूरे भारत में विभिन्न प्रकार के बकरियों पायी जाती है. जिसमें बिहार के लिए ब्लैक बंगाल, बरबरी, बीटल, सिरोही तथा जमुनापरी उपयुक्त हैं. ब्लैक बंगाल छोटे स्तर के बकरी पालक मुख्य रूप से भूगिहीन गजदूर के लिए बहुत ही अच्छा है। यह 15 गहिने में बच्चे को जन्म देने लायक हो जाती है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि ये दो साल में 3 मार मन्या दे देती है और एक बार में 2-3 मच्या देती है। इस मकरी में दूध न के बराबर होता है और अधिक बच्चा होने के कारण दूध की कमी से बच्चे में मृत्यु दर अधिक होती है. इस बकरियों का मांस सबसे स्वादिष्ट होता है तथा चमड़ा भी उच्च कोटि की होती है. यह मुख्यतः बिहार बंगाल ओर पड़ोसी राज्य में पायी जाती है. बरबरी, बीटल, सिरोही तथा जमुनापरी मांस उत्पादन के लिए बेहद ही अच्छी नरल हैं. इनके शरीर का बढ़ोतरी बहुत तेजी से होती है और ये सभी 6-9 महिनों में बाजार में बिकने के लिए तैयार हो जाती है. ये 1-2 बच्चे एक बार में देती है. ये सभी प्रजाती 0.5 से 0.75 ली० दूध दे सकती है. इसमें जमुनापरी सबसे अधिक दूध देती है तथा इसे गरीबों का गाय भी कहा जाता है.
आवास प्रबंधन कैस करें
बकरी पालन के लिए काफी कम जमीन की आवश्यकता होती है ओर लगभग हर इलाकों में इसको पाला जा सकता है. बकरी का घर जल जमाव से दूर ऊंची जगह पर होना चाहिए. जहीं पानी न लग सके. जमीन अगर बलुआही हो तो बहुत ही अच्छा जिससे कीचड़ होने का डर नहीं रहता है। जिससे आसपास सफाई आसानी से किया जा सकता है. बकरी 10-12 वर्गफीट तथा बकरा के लिए 15-20 वर्गफीट जगह की आवश्यकता पड़ती है. आमतौर पर बाड़े की चौड़ाई 15-20 फीट तथा उँचाई लगभग 10-12 फीट होती है ओर इसकी लम्बाई बकरी के संख्या के अनुसार घटाई बढ़ाई जा सकती है. बाड़े के लगभग दुगुना आकार आगे खाली स्थान होनी चाहिए. जिसमें बकरी आसानी से घूम-फिर सके और इस स्थान को तार से घेर दें जिससे कुत्तों तथा अन्य जानवर से बचाया जा सके. बाड़े का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि बाड़े उत्तर-दक्षिण दिशा में हो. बाड़े में बकरा, गाभिन तथा बीमार पशु के लिए अलग जगह होनी चाहिए। बाड़े का फर्श सीमेंट या बलुआही मिट्टी का होना चाहिए.
आहार प्रबंधन भी है बेहद जरूरी
बकरी आमतौर पर घर कर अपना पेट भरती है. 5-10 बकरी रखने वाले पशुपालक खासकर ब्लैक बंगाल प्रजाती को चरा कर पाला जा सकता है लेकिन इससे इनका वजन ज्यादा नहीं हो पाता, अगर वे चराने के साथ-साथ कुछ दाना भी खिलाएं तो उनमें वृद्धि अधिक होती है. बड़े स्तर पर तथा अच्छे नस्ल के बकरी को बाड़े में रख कर खिलाना उचित होता है. इन्हें बाड़े में ही हरी घास तथा दाना दिया जाता है और इस विधि से बकरियों का गजन अधिक बढ़ता है. इसे व्यावसाय के रूप में अपना कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. बकरियों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए हरा एवं सूखा चारा के साथ साथ दाने का मिश्रण भी देना आवश्यक है. जैसे मकई, जौ, खल्ली, चना, चोकर, नमक और खनिज लवण मिश्रण आदि. आहार की मात्रा बकरी के उम्र और स्थिति पर निर्भर करता है. सफल बकरी पालन के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि किस उम्र में कितना और कौन-सा चारा दें। मेमने, दूधारू तथा गाभिन बकरियों को अलग से बारा देना घाहिए. अनुकूल वृद्धि के लिए अलग-अलग खाना देना आवश्यक है.
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