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Sheep Farming: बेहतरीन ऊन और मीट के लिए पसंद की जाती है ये भेड़

avikalin sheep
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशु पालकों को तब दोहरा फायदा हो जाता है, जब किसी पशु से उन्हें दो उत्पादन मिलता है. मसलन दूध और मीट. वहीं भेड़ पालन भी छोटे किसानों के लिए एक फायदे का सौदा होता है, क्योंकि भेड़ पालन करके पशु पालक इसका ऊन निकालते हैं और मीट से भी उन्हें मुनाफा होता है. ये कहा जा सकता है कि उन्हें इस तरह से दोहरा फायदा होता है. भेड़ की कई नस्ले हैं जिन्हें पालकर किसान कमाई कर सकते हैं. उसी में से भेड़ की एक नस्ल अविकालीन के नाम से जानी जाती है, जिसे पालन कर किसानों को फायदा हो सकता है.

चिकने ऊन के लिए है पहली पसंद
आईसीएआर की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक अविकालीन भेड़ जब तीन से छह साल के बीच अपने सबसे बड़े बच्चे को जन्म देती है. वहीं भेड़ की सभी नस्लों के साथ ही अविकालीन नस्ल की भेड़ भी 12 महीने में केवल एक बार मौसम में आती हैं, इसलिए अधिकांश नस्ल की भेड़ की तरह इस नस्ल की भेड़ की भी हर एक वर्ष के दौरान केवल एक से दो मेमने पैदा करने की संभावना होती है. वैसे अविकालिन नस्ल को अंतर-प्रजनन और चिकने ऊन के वजन के लिए चयन किया जाता है. इस नस्ल को रैम्बौइलेट और मालपुरा नस्ल के आधार से विकसित किया गया है. ये भेड़ें हर माह क्लिप में 27 माइक्रोन व्यास, 27% मेडुलेशन और 4.75 सेमी की स्टेपल लंबाई के साथ लगभग 1.75 किलोग्राम चिकना ऊन का उत्पादन करती हैं.

कालीन के लिए बेहतरीन है ऊन
इस नस्ल की एक खास बात ये है कि यह नस्ल कालीन ऊन और मटन उत्पादन के लिए दोहरे उद्देश्य वाली भेड़ के रूप में काफी उपयुक्त है. इसलिए किसानों को इससे अच्छा फायदा होता है. क्योंकि ये दोहरा मुनाफा देने वाली नस्ल मानी जाती हैं. जिन किसानों को ये शिकायत रहती है कि उन्हें भेड़ पालन के कारोबार से ज्यादा फायदा नहीं मिल पा रहा है. उनके लिए अविकालीन नस्ल की भेड़ पालन करना एक मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है. अविकालीन नस्ल की भेड़ के बारे में कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि इसका ऊन बहुत पतला होता है. कई बार तो एक भेड़ से आप एक साल में 2 किलो से ज्यादा ऊन हासिल कर सकते हैं. जिससे अच्छा कालीन तैयार किया जा सकता है.

1975 में अविकालीन भेड़ विकसित हुई
जानकारी के लिए बता दें कि शुरू में धीमी रफ्तार से वैज्ञानिकों द्वारा सबसे पहले 1970-71 में अविमास बाद में भारत मेरीनों नामक भेडे़ को विकसित किया गया था. जिससे भारत मेरीनों ने अधिक ऊन के लिए ख्याति अर्जित कर ली. वहीं अविमांस ने अधिक मांस उत्पादन के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया था. हालांकि वैज्ञानिकों का लक्ष्य यहीं पूरा नहीं हुआ. उन्होंने लगातार रिसर्च जारी रखी और वर्ष 1975 में अविकालीन भेड विकसित की गई जो कालीन बनाने की ऊन के क्षैत्र में प्रसिद्ध हो गई. वर्ष 1977 में संस्थानिक वैज्ञानिकों ने अविवस्त्र नामक भेड पैदा कर ज्यादा मुलायम ऊन देने वाली भेड़ श्रेय हासिल किया.

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