Home पशुपालन Sheep Farming: ये 3 बीमारियां भेड़ पालन को कर सकती है बर्बाद, यहां पढ़िए लक्षण और बचाव का तरीका
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Sheep Farming: ये 3 बीमारियां भेड़ पालन को कर सकती है बर्बाद, यहां पढ़िए लक्षण और बचाव का तरीका

भेड़ों को हमेशा साफ, ताजा पानी उपलब्ध कराएं.
भेड़ की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. अन्य पशुओं की तरह ही भेड़ें भी बीमारी पड़ती हैं. भेड़ों को भी कई तरह के रोगों से बचाया जाना चाहिए. भेड़ों में एमएफडी बीमारी के बारे में अक्सर भेड़ पालक जानते हैं लेकिन कन्टेजियस एकथाईमा और एन्थ्रेक्स रोग के बारे में कम ही लोग जानते हैं. ये बीमारियां भी खतरनाक हैं. आइए इस आर्टिकल में हम आपको आपको एमएफडी, कन्टेजियस एकथाईमा और एन्थ्रेक्स बीमारी के बारे में बताते हैं कि ये कैसे होती है और इसके बचाव और लक्षण के बारे में जानकारी साझा की जा रही है.

बताते चलें कि पशु एक्सपर्ट कहते हैं कि पशुपालकों को कभी भी किसी भी बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए. क्योंकि जब कोई भी बीमारी लग गई तो फिर ये पशुओं की सेहत पर असर डालती है और इससे उत्पादन पर असर पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि बीमारियों के बारे में पहले से जानकारी कर ली जाए.

एफएमडी रोग: भेड़ों में गददी भेड़ पालक इस बीमरी को रिकणु नाम की बीमारी से जानते हैं, यह बीमारी भी विषाणु जनित छूत का रोग है. बहुत जल्दी एक रोग ग्रस्त जानवर से दूसरे जानवरों में फैल जाता है.

लक्षण क्या हैं: इस बीमारी से ग्रस्त जानवरों के मुंह, जुबान, होंठ व खुरों के बीच की खाल में फफोले पड़ जाते है, भेड़ को तेज़ बुखार आता है और उनके मुंह से लार टपकती है. भेड़ लंगड़ी हो जाती हैं. मुंह और जुबान के अंदर छाले निकल आते हैं. जबकि भेड़ घास नहीं खा पाती व कमज़ोर हो जाती हैं. कई बार गाभिन भेड़-बकरियों का इस रोग से गर्भपात भी हो जाता है, भेड़-बकरियों के बच्चों की मृत्यु दर अधिक होती है.

रोग से कैसे करें बचाव: इस रोग में सबसे पहले भेड़ पालक को रोग से ग्रस्त जानवरों को अन्य जानवरों से अलग करना चाहिए. बीमार भेड़ के इलाज, मुंह के छालों में वोरोग्लिसरिन मलहम खुरों की सफाई लाल दवाई या नीले थोथे के घोल से या फोरमेलिन के घोल से करनी चाहिए. पशु चिकित्सक के परामर्श अनुससार चार-पांच दिन एंटीबायोटिक इंजेक्शन लगाने चाहिए. प्रत्येक भेड़ पालक को छह महीने के अन्तराल के दौरान रोग से रोकथाम के लिए टीकाकरण करवाना चाहिए.

कन्टेजियस एकथाईमा क्या है: इस बीमारी को गददी भेड़ पालक मौढे़ नाम से भी जानते हैं. यह बीमारी भी एक प्रकार के विषाणु द्वारा भेड़ों में होती है. इसमें भेड़ के मुंह, नाक व होठों के बाहरी तरफ फोड़े निकल जाते हैं. इसके बाद काफी बढ़ जाते हैं. जिससे मुंह फूल जाता है और घास खाने में तकलीफ होने के साथ-साथ बीमार भेड़-बकरी को हल्का बुखार भी रहता है.

बचाव कैसे किया जाए: बीमार भेड़ को अलग कर उनका इलाज करना चाहिए. वहीं इलाज के लिए फोड़ों को लाल दवाई के घोल से धोकर उन पर एन्टीसेप्टिक मलहम लगाना बेहतर होता है. ज्यादा बीमार भेड़-बकरी को हर-पांच दिन एंटीबायोटिक इन्जेक्शन लगाना चाहिए.

एन्थ्रेक्स रोग के बारे में जानें: इस बीमारी को भेड़ पालक रक्तांजली बीमारी कहते हैं. यह बीमारी जीवाणु द्वारा होती है. गद्दी भेड़ पालक इसे गंणडयाली नामक रोग से भी जानते हैं. यह रोग भेड़-बकरियों में बहुत तेज़ बुखार आता है, मृत भेड़-बकरी के नाक, कान, मुंह व गुदा से खून का रिसाव होता है.

रोग से बचाव कैसे करें: इस रोग से मरे भेड़-बकरियों की खाल नहीं निकालनी चाहिए और मरे जानवर को गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए. चरागाह को बदल देना चाहिए. बीमार भेड़-बकरियों को एंटीबायोटिक इन्जेक्शन चार-पांच दिन पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार देना चाहिए. इस रोग से बचाव के लिए टीकाकरण करवाया जा सकता है.

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