नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में साल 2017 मेंं जब योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सरकार का गठन हुआ तो उसके बाद राज्य में चल रहे बहुत से स्लाटर हाउस बंद कर दिए गए. राज्य के तमाम जिलों में चल रहे बहुत से स्लाटर हाउस पर अभी भी सरकारी ताला लटक रहा है. दरअसल, ज्यादातर स्लाटर हाउस पर नियमों का पालन नहीं हो रह था. इसके चलते सरकार को इसे बंद करने में ज्यादा दिक्कत भी नहीं है. इसके बाद से स्लाटर हाउस को फिर से शुरू करने की भी ज्यादा कोशिश होती नहीं दिखाई दी है.
जानकारों का कहना है कि यूपी में मीट कारोबारियों में मची उथल-पुथल की वजह इसके लिए पहले से बने बड़े ही सख्त नियम हैं. दरसअल, प्रदेश में चल रहे ज्यादातर स्लॉटर हाउस सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देश पर बने नियमों को अनदेखा कर रहे थे. जो निर्देश हैं उसके मुताबिक स्लॉटर हाउस चलाने के लिए 20 सख्त नियम बनाए गए थे. इसमें स्लॉटर हाउस कैसा हो इसके लिए भी तमाम नियम हैं. वहां पशुओं को लाने-ले जाने से लेकर कटान तक के नियम ये हैं. आइए जानते हैं क्या-क्या नियम हैं.
यहां पढ़ें स्लाटर हाउस चलाने के नियम
पहला नियम ये है कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960: पशुओं के साथ कोई भी जुल्म नहीं होगा. यहां उनके खान-पान और स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखना होगा.
1978 में बनए पशुओं को ले जाने के नियम के मुताबिक पशुओं को ले जाने के लिए गाड़ी में अच्दी व्यवस्था हो और चढ़ाने-उतारने के लिए रैंप की भी व्यवस्था होनी चाहिए.
अक्सर पशुओं की गाड़ी में ओवरलोडिंग होती है. ज्यादा मुनाफे की चक्कर में ऐसा किया जाता है. जबकि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 2000 के तहत ओवरलोडिंग नहीं हो सकती.
स्लॉटर हाउस अधिनियम, 2001 की मानें तो स्लॉटर हाउस में हवा का इंतजाम होगा. दीवारें साफ रहनी चाहिए और बड़े पशुओं के लिए 2.8 वर्ग मीटर प्रति जानवर का क्षेत्रफल होना चाहिए.
ऐंटी मॉर्टम और पोस्ट मॉर्टम नियम के तहत कटान से पहले और बाद में पशु की ठीक तरह से उनकी जांच होगी. जबकि ज्यादातर स्लाटर हाउस में ऐसा कुछ भी नहीं था.
रेग्युलेशन ऑफ लाइवस्टॉक मार्केट 2016 की मानें तो गर्भस्थ और तीन महीने के बच्चे वाले जानवरों को नहीं काटा जाएगा, कई बार इसका भी ख्याल नहीं रखा जाता था.
सेंट्रल मोटर वीकल अधिनियम 2015 के मुताबिक जानवरों को लाने के लिए गाड़ियों में तमाम जरूरी इंतजाम का होना जरूरी है.
सेंट्रल मोटर वीकल अधिनियम, 2016 के तहत कटान के बाद अवशेष को बंद गाड़ियों में लाया-ले जाने का नियम है.
फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अधिनियम 2006 कहता है कि मीट को खुले में नहीं रखा जा सकता है. मीट के लिए प्रॉसेसिंग प्लांट लगाने के नियम हैं.
फूड बिजनेस का लाइसेंस के तहत दुकानों के लिए उचित लाइसेंस लेने होंगे. इसके बिना दुकानों का संचालन अवैध है.
फूड एफिडेविट नियम के मुताबिक किस तरह के पशुओं की कटान होनी है और कितनी मात्रा में उसे लिखित दर्ज कराना भी जरूरी है.
ऐग्रिकल्चर एंड प्रॉसेस्ड फूड प्रॉडक्ट एक्सपोर्ट डिवेलपमेंट अथॉरिटी, 2009 के मानें तो एक्सपोर्ट होने वाले मीट का प्रकार और मात्रा का लाइसेंस लेना होना भी जरूरी है.
पर्यावरण अधिनियम 1986 के मानें तो स्लॉटर हाउस पर्यावरण के अनुकूल होंगे. जबकि प्रदेश में चल रहे स्लाटर हाउस में ऐसा नहीं था.
डिस्चार्ज अधिनियम के तहत स्लॉटर हाउस का कोई भी अवशेष बाहर खुले में नहीं रखने का नियम था.
जल प्रदूषण निवारक अधिनियम की मानें तो कोई भी अवशेष लिक्विड सीधे तौर पर नालियों में या कहीं और नहीं जाएगा.
वायु प्रदूषण निवारक अधिनियम के तहत आसपास बदबूदार हवा नहीं फैलने पाए. जबकि जहां भी स्लॉटर हाउस चल रहे थे वहां नियमों को फॉलो नहीं किया जा रहा था.
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट अधिनियम के तहत निकायों के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट से जुड़े नियमों का पालन करने का नियम है.
एनजीटी ऐक्ट 2010 के तहत किसी भी सूरत में कोई भी कृत्य पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं होना चाहिए.
स्लॉटर हाउसों का रखरखाव, भंडारण और परिवहन अधिनियम के तहत स्लॉटर हाउसों का रखरखाव ठीक से होगा. दीवारें सपाट होंगी. रैंप के इंतजाम होंगे.
मीट प्रॉसेसिंग यूनिट के तहत हर स्लॉटर हाउस में मीट प्रॉसेसिंग यूनिट होगी. मीट खुले में नहीं रखा जाएगा. इसको बाहर ले जाने से पहले जांच कराने का नियम था.
Leave a comment