नई दिल्ली. जिस तरह से लोग गाने के एक दो मुखड़े याद करके गुनगुनाते रहते हैं, इस तरह से संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे(Egg), ये स्लोगन लोगों की जुबान पर रहता है. आपने अक्सर लोगों को जब भी अंडों की बात करते हुए सुना होगा तो इस स्लोगन को जरुर बोलते भी सुना होगा. दरअसल, इस स्लोगन का रेडिया, दूरदर्शन पर इतना प्रचार हुआ है कि उस वक्त की पीढ़ी के हर किसी को ये याद है. लोग जब अंडों के फायदे गिनाते हैं तो उस वक्त भी इस स्लोगन का इस्तेमाल करते हैं. क्या आपको पता है कि इस स्लोगन को किसने बनाया था और इसके पीछे क्या मकसद था. आइए इस बाारे में जानते हैं.
संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे स्लोगन को NECC की स्थापना करने वाले डॉ. बीवी राव ने बनाया था. उन्होंने NECC की स्थापना के बाद अंडे के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए इस स्लोगन को बनाया गया था. मौजूदा वक्त में NECC की अध्यक्ष उनकी बेटी अनुराधा देसाई हैं और उनके नेतृत्व में ये संस्था अंडे को बढ़ावा देने के साथ ही अंडे के दाम तय करने का काम करती है. डॉ. राव पोल्ट्री फार्म में तकनीक और साइंटिफिक तरीकों को शामिल करने की कोशिश करने वालों में से थे.
500 मुर्गियों की देखभाल से पद्मश्री पाने तक का सफर
संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे का स्लोगन देने वाले डॉ. बीवी राव के सफर की बात की जाए तो यह बेहद ही दिलचस्प रहा है. आज भले ही उनकी कंपनियों का हजारों करोड़ों रुपये का कारोबार है लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स पर अगर नजर डालें तो डॉ. राव की पहली नौकरी और इस सेक्टर में कदम रखने का सफर 500 मुर्गियों की देखभाल से ही शुरू हुआ था. आजादी से पहले साल 1935 में जन्म पाने वाले डॉ. राव ने एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय आंध्र प्रदेश से एक डिप्लोमा कोर्स किया था और यह कोर्स पोल्ट्री और डेयरी से जुड़ा हुआ था. इसी डिप्लोमा के आधार पर उनकी पहली नौकरी 500 मुर्गियों की देखभाल करने के लिए लगी थी. यहीं से राव ने पोल्ट्री सेक्टर में अपने सफर का आगाज किया और फिर आगे चलकर उन्होंने पद्मश्री अवार्ड हासिल किया. उनकी कंपनियों की बात की जाए तो पोल्ट्री सेक्टर में वैंनकोब, वेंकी और वीएच ग्रुप के नाम से चलती है. उनका प्रोडक्ट देश नहीं विदेशों में भी खूब बिकता है और उसकी जबरदस्त डिमांड रहती है.
इस तरह वजूद में आया NECC
पोल्ट्री से जुड़े जानकार कहते हैं कि साल 1980 में अंडों के दाम बहुत कम हो गए थे. पोल्ट्री फार्मर के बीच इस वजह से बेहद बेचैनी थी कि अब क्या होगा. कहीं पोल्ट्री फार्म को बंद तो नहीं करना पड़ेगा. तभी डॉ. राव ने देशभर के पोल्ट्री फार्मरों को इकट्ठा किया और उनके साथ हर पहलू पर बात की और साल 1982 में NECC की स्थापना की गई. तब से लेकर आज तक NECC रोजाना कई राज्यों और शहरों में अंडों के दाम तय करती है. यही वो संस्था है, जिसके तय किये गए रेट के आधार पर अंडों की खरीद फरोख्त होती है. डॉ. राव चाहते थे कि दूसरे सेक्टर की तरह पोल्ट्री में भी तकनीक का इस्तेमाल हो, साइंटिफिक तरीके से पोल्ट्री फार्म चलाया जाए. अपनी इसी सोच को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे के पास एक शैक्षिक संस्था की स्थापना भी की थी. जहां पोल्ट्री समेत दूसरे सेक्टर से जुड़ी शिक्षा दी जाती है.
Leave a comment