नई दिल्ली. भारत में लंबे समय से केज फ्री अंडों के उत्पादन को लेकर चर्चा हो रही है. कई ऐसी संस्थाएं हैं, जो भारत में केज फ्री अंडों के प्रोडक्शन की वकालत करती हैं. उनका यह मानना है कि मुर्गियों को केज में न रखकर बल्कि आजाद छोड़ा जाए, क्योंकि केज में रखकर मुर्गियों का कहीं ना कहीं उत्पीड़न किया जा रहा है. ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या केज फ्री अंडों का उत्पादन संभव है और इससे पोल्ट्री फार्मर्स को नुकसान होगा या फायदा? क्योंकि अंडों के प्रोडक्शन से हजारों लोगों की कमाई होती है.
आपको बता दें कि लेयर मुर्गियां अंडों का उत्पादन करती हैं और उन्हें केज में रखा जाता है. वहीं उन्हें दाना-पानी दिया जाता है, जिसको खाने के बाद मुर्गियां अंडों का उत्पादन करती हैं. इसके बाद उन्हें इकट्ठा करके बाजार में बेच दिया जाता है. जबकि केज फ्री अंडो का उत्पादन का मतलब यह है कि मुर्गियों को खुली जगह पर छोड़ दिया जाता है और मुर्गियां आजादी से यहां वहां घूमती हैं और फिर अंडों का उत्पादन करती हैं.
भारत में है केज फ्री अंडों की डिमांड
एक्सपर्ट कहते हैं कि केज फ्री अंडा उत्पादन करने के लिए मुर्गियों को ज्यादा जगह की जरूरत होती है. इसके लिए एक मुर्गी को एक मीटर लंबाई और 1 मीटर चौड़ाई में यानी स्क्वायर मीटर की जगह की जरूरत होगी. जबकि केज सिस्टम की वजह से मुर्गियां को अंडों का उत्पादन करने में कम जगह की जरूरत होती है. हालांकि सरकार भी केज फ्री अंडों के उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता कर रही है और इसके लिए सीएआरआई मुर्गी पालकों ट्रेनिंग भी देगा. वहीं भारत में केज फ्री अंडों की डिमांड ज्यादा है. अकेले दिल्ली एनसीआर में ही 4 से 5 लाख अंडों की डिमांड है.
कीमत ज्यादा, पर ये मुश्किल भी है
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि केज फ्री अंडा भी ब्राउन एग की कैटेगरी में आता है. हालांकि इसकी कीमत ज्यादा होती है. जहां ब्राउन एग की कीमत 15 रुपए तक होती है तो वहीं केज फ्री अंडों की कीमत तकरीबन 20 रुपए तक होगी. क्योंकि इसके उत्पादन में ज्यादा जगह की जरूरत होती है. केज फ्री सिस्टम से अंडों के उत्पादन में अंडों के टूटने का भी खतरा ज्यादा रहता है. या ये कहें कि अंडे ज्यादा टूटते हैं. वहीं खुले में मुर्गियां रहेंगी तो मुर्गियों को बीमारी जल्दी लगेगी. इसलिए केज फ्री अंडों का उत्पादन थोड़ा मुश्किल है.
जानें पीएफआई का इसपर क्या है स्टैंड
पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया का यह मानना है कि भारत में जमीन की कमी और महंगे रेट को देखते हुए केज फ्री अंडा उत्पादन एक मुश्किल टास्क है. संस्था का मानना है कि यदि केज फ्री अंडा उत्पादन किया जाए तो मौजूदा वक्त में जितनी जमीन की जरूरत है, उससे तीन गुना ज्यादा की जरूरत होगी. उदाहरण के तौर पर इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पोल्ट्री फार्म में 25 हजार मुर्गियों पाली जा रही हैं तो केज फ्री करने पर इतनी जगह में सिर्फ 17 हजार मुर्गियों को ही पाला जा सकता है. जबकि गांव या शहर में हर जगह जमीन की कीमतों से हम सब वाकिफ हैं. एक पोल्ट्री फार्मर के लिए ज्यादा महंगी जमीन पर मुर्गी पालन करना संभव नहीं दिखता है. एक तरफ जहां केज फ्री अंडे की कीमत ज्यादा है तो वहीं दूसरी तरफ जमीन की कमी से यह पोल्ट्री फार्मर के लिए ये थोड़ा मुश्किल है.
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