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Fodder: गर्मियों में इस सिस्टम से कम नहीं होगा पशुओं के लिए चारा, कम बारिश वाले इलाकों के लिए है मुफीद

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. चारागाह फसल पशुधन एकीकृत प्रणाली की बात की जाए तो जिन इलाकों में कम बारिश होती है वहां के लिए मुफीद है. मतलब है, जहां गर्मियों में चारा की कमी है वहां पर इस सिस्टम के तहत कमी को पूरा किया जा सकता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि इस प्रणाली में चारागाह की भूमि का उपयोग खाद्य फसल उत्पादन व चारागाह दोनों उद्देश्यों के लिए किया जाता है. इसमें फसल तथा चारागाह की घास दोनों सहजीवी रूप से विकसित होते हैं. यह प्रणाली एक वार्षिक फसल पर आधारित है, जैसे कि जई, बाजरा आदि.

एक्सपर्ट के मुताबिक इसमें कभी भी भूमि को खाली नहीं छोड़ा जाता है. जैसे ही फसल पक कर काट ली जाती है, उसके बाद पशु चारागाह में जा सकते हैं. पशु उस वनस्पति को चरते हैं जो अभी फसल के नीचे उगना शुरू हो रही है, यह प्रणाली उस वातावरण के अनुकूल हैं. जहां वर्षा कम होती है तथा यह मृदा की जल धारण क्षमता को भी बढ़ाता है. एक्सपर्ट का कहना है कि ये पशुपालकों के लिए बेहद ही मुफीद सिस्टम है. क्योंकि अक्सर पशुपालक जहां पर पानी की कमी होती है वहां चारा की कमी के से भी जूझते रहते हैं.

यहां पढ़ें फसल-पशुधन एकीकृत प्रणाली के क्या-क्या हैं फायदे

  1. एक्सपर्ट इस बारे में कहते हैं कि पारम्परिक फसल की तुलना में इस सिस्टम की वित्तीय लागत बहुत कम है. यानि ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता है. खाद का उपयोग एक प्राकृतिक उर्वरक के रूप में किया जाता है. ताकि विशेष रूप से कार्बनिक पदार्थों और नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्वों को जोड़कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सके.
  2. एक्सपर्ट ये भी कहते हैं कि पारम्परिक फसल विधियों में आवश्यक, जमीनी तैयारी तथा खरपतवार नियंत्रण की अतिरिक्त लागत को कम किया जा सकता है.
  3. वहीं मिट्टी की उर्वरता में सुधार, जल धारण क्षमता में वृद्धि इत्यादि की जा सकती है.
  4. सबसे जरूरी बात ये है कि इसमें चारागाह को फिर से बोने की आवश्यकता नहीं, जिसमें अतिरिक्त लागत हो सकती है.
  5. पशुओं को हरे चारे के साथ फसल से गिरा दाना सीधा प्राप्त जो जाता है, जो कि फसल की उपज के नुकसान की पूर्ति कर देता है.
  6. यह प्रणाली मिट्टी के कार्बन अनुक्रम के स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डालती है. इसलिए वायुमण्डलीय कार्बनडाई ऑक्साइड को कम करके ग्रीन हाउस प्रभाव में कमी लाता है.

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