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Animal Husbandry: गाय-भैंस के लिए जानलेवा है ये बीमारी, यहां पढ़ें, इसके लक्षण और इलाज के बारे में

दुधारू पशुओं के बयाने के संकेत में सामान्यतया गर्भनाल या जेर का निष्कासन ब्याने के तीन से 8 घंटे बाद हो जाता है.
गाय-भैंस की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. देश में सरकार पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई जरूरी कदम उठा रही है. सरकार इसके लिए कई योजनाएं भी संचालित कर रही है ताकि पशुपालन में किसान ज्यादा दिलचस्पी दिखाएं. सरकार का मानना है कि पशुपालन से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है. जबकि बहुत से किसानों ने पशुपालन करके ऐसा किया भी है, लेकिन पशुपालन में एक चीज पशुपालकों को बहुत परेशान करती है. पशु जब बीमार रहने लग जाते हैं तो फिर पशु पालकों के सामने संकट खड़ा हो जाता है और उन्हें इस कारोबार में नुकसान उठाना पड़ जाता है.

वैसे तो पशुओं की कई बीमारी है, जिससे प्रोडक्शन से लेकर पशुओं की सेहत पर बहुत गंभीर असर पड़ता है लेकिन हम यहां आज राइनोट्रेकाइटिस (आईबीआर) के बारे में आप को बताने जा रहे हैं. ये बीमारी गाय और भैंस दोनों तरह के डेयरी पशुओ को परेशान करती है. इससे उत्पादन पर बेहद ही बुरा असर पड़ता है.

यहां जानें इस बीमारी के बारे में

  • एक वायरल बीमारी है जो पालतू और जंगली जानवरों गाय एवं भैंसों को प्रभावित करती है.
  • इसके तीन रूप हैं. सांस लेने में दिक्कत, सेक्सुअल और दिमागी बीमारी. भारत में यह बीमारी ज्यादा प्रचलित है.
  • इस बीमारी से गर्भपात, जेर का रुकना, दूध उत्पादन में मामूली कमी और बछड़ियों की मृत्यु भी हो सकती है.

क्या हैं इसके लक्षण

  • आमतौर पर पशुओं को खांसी, दोनों नाक से पानी निकलने लग जाता है. वहीं पशुओं को बुखार भी रहता है.
  • पशुओं को आंखों और नाक से पानी जाने लग जाता है. कभी कभी दोनों नाक से एक साथ पानी निकलता है.
  • इसके सेक्सुअल असर की बात की जाए तो वजाइना में सूजन, सूजने के बाद फोड़ा बन जाता है.
  • आमतौर पर 6-8 माह के गर्भकाल में होता है.
  • कई बार ये बीमारी पशुओं को जिंदगीभर परेशान करती है. पशुओं की ये बीमारी ठीक ही नहीं होती है.
  • 6 माह से कम आयु वाली बछिड़यों के दिमाग को यह रोग प्रभावित करता है. इसकी वजह से पशुओं की कभी भी मौत हो जाती है.

रोकथाम और नियंत्रण का तरीका

  • नए पशुओं को जांच के बाद ही खरीदें. ताकि डेयरी उद्योग में नुकसान न हो.
  • जो पशु रोगरहित हों उन्हें ही समूह में शामिल करें. बीमार पशुओं को समूह से अलग कर दें.
  • आईबीआर का कोई भी टीका भारत में वर्तमान में नहीं बनाया जाता है. इसलिए जरूरी है कि एहतियात बरती जाए.

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