नई दिल्ली. भारत सहित पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी समस्या है. इस ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन गैस उत्सर्जन एक बड़ी वजह है. जबकि भारत में पशुओं की संख्या बढ़ रही है और एक्सपर्ट कहते हैं कि जैसे-जैसे पशुओं की संख्या में इजाफा होगा, वैसे-वैसे मीथेन गैस उत्सर्जन का भी खतरा बढ़ता जाएगा. पशुपालन में छोटे जुगाली करने वाले पशुओं के मुकाबले गाय और भैंस से मीथेन गैस का उत्सर्जन ज्यादा होता है. ये पशुपालन में एक बड़ी समस्या है और इस समस्या को खत्म करने के लिए काम भी किया जा रहा है.
गोकारिन के फाउंडर डॉ. रामानुज पांडे का कहना है कि चारे में कुछ बदलाव करके गाय-भैंस से होने वाले मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. उनका कहना है कि इस मामूली बदलाव से न सिर्फ मीथेन गैस के उत्सर्जन को काम किया जा सकता है, बल्कि पशुपालकों की इनकम भी डबल हो सकती है. बाजार में खास तरह का एनिमल फीड बिक रहा है. इस फीड को खिलाने से पशुपालकों की इनकम डबल होती है. आई इस बारे में डिटेल से जानते हैं.
इस तरह होता है मीथेन गैस का उत्सर्जन
डॉ. रामानुज पांडे का कहना है कि सबसे ज्यादा मुंह के रास्ते मीथेन गैस का उत्सर्जन गाय और भैंस करती हैं. वह जिस तरह से चारा खाती हैं उसे चबाने की पहली स्टेज में ही मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, लेकिन रेड अल्गी से इसे कम किया जा सकता है. रेड अल्गी को एक कट्टे फीड में कितना मिलना होता है इसका ख्याल भी रखने की जरूरत होती है. क्योंकि फीड में रेड अल्गी ज्यादा हो जाने से गाय भैंस को दूध उत्पादन कम हो सकता है. जबकि फीड को इस तरह से तैयार किया जाता है कि उत्पादन में कमी नहीं हो बल्कि इजाफा हो जाए.
इस तरह कमा सकते हैं मुनाफा
उन्होंने कहा कि जब पशुपालक खास एनिमल फीड खरीदते हैं तो कट्टे पर अंकों वाला एक कोड होता है, इस कोड को कंपनी के एप पर जाकर सबमिट करना चाहिए. इससे पता चलता है कि पशुपालक ने अपने पशुओं को कितना रेड अल्गी वाला फीड खिलाया है, जिससे मीथेन गैस का उत्सर्जन कम करने में मदद मिलती है. इसकी मदद से वॉल्यूम में यह भी पता चल जाता है कि पशुपालक ने कितनी गैस का उत्सर्जन होने रोक दिया. जिससे पशुपालकों के क्रेडिट नंबर भी मिलता है और उसके बाद इन नंबरों को बेचकर वह नकद मुनाफा भी कमा सकता है.
कितना होता है मीथेन गैस का उत्सर्जन
हमारे प्रमुख उत्पाद, पोषण 12000 और पोषण 10000, टिकाऊ, पौष्टिक फ़ीड प्रदान करते हैं, जो पशुधन की हैल्थ और उत्पादकता को बढ़ाता है. इसके अलावा गोकारिन का मवेशी फीड मीथेन उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है. भारत में सालाना लगभग 21.4 मिलियन टन मीथेन का उत्पादन होता है. हालांकि मवेशियों को इस फीड देने से इसमें कमी लाई जा सकती है. बता दें की महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली प्रोटीन की खपत ज्यादा है. अगर मवेशियों के पोषण पर ध्यान दिया जाए जो गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करने में सफलता मिलेगी.
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