नई दिल्ली. पोल्ट्री फार्मिंग में कई ऐसी बीमारियां हैं जो पोल्ट्री फार्मिंग में बड़ा नुकसान करती हैं. बेहद ही फायदा देने वाले इस कारोबार में घाटा होने लग जाता है. क्योंकि बीमारियों की वजह से मुर्गियों का इलाज करना पड़ता है, इसके लिए पोल्ट्री किसान को अतिरिक्त खर्च अपनी जेब से करना पड़ता है. वहीं अगर बीमारी ठीक नहीं हुई तो पक्षियों की मौत होने लग जाती है और फिर इस कारोबार से जुटे लोगों को बड़ा नुकसान होता है. एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि मुर्गियों का समय-समय पर वैक्सीनेशन कराना चाहिए. क्योंकि कई बीमारियां ऐसी हैं, जिन्हें वैक्सीन के जरिए रोका जा सकता है.
इस आर्टिकल में हम आपको गम्बोरो रोग के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं. जो आमतौर पर 2 से 15 हफ्तों की मुर्गियों को प्रभावित करता है. इस बीमारी के होने की कई वजहे हैं, आइए इसके लक्षण, इलाज आदि के बारे में जानते हैं. पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि यह भयंकर छूतदार बीमारी है जो कि चूजों में ज्यादा होती है. आमतौर पर 2 से 15 सप्ताह के पक्षियों में यह रोग होता है. इस उम्र के पक्षियों को बचाने की जरूरत होती है. ये बीमारी वायरस (रियो वायरस) द्वारा होती है. एक्सपर्ट के मुताबिक इसका प्रसार पोल्ट्री फार्मिंग में मौजूद वायरस के कारण व सम्पर्क द्वारा फैलता है.
यहां पढ़ें बीमारी के लक्षण
इस बीमारी में वायरस मुंह, आंख तथा सांस तंत्र द्वारा शरीर में पहुंचता है. संक्रमित लिटर, पक्षी, इंसानों और उपकरणों द्वारा भी रोग प्रसारित होता है. रोग के लक्षण 3-6 सप्ताह की आयु में प्रकट होते हैं. इसमें पक्षी सुस्त हो जाते हैं. फिर भूख में कमी हो जाती है. इसके अलावा पक्षियों के शरीर में पानी की कमी, प्यास अधिक लगती है और कंपकंपी आती है. पंख अव्यवस्थित दिखाई पड़ते हैं. बीमार पक्षी वेंट को बार-बार प्रिक करता है. वहीं मुर्गियां चूने जैसी सफेद बीट करती हैं. मृत्युदर 20 फीसदी तक हो जाती है और 5-10 दिन बाद लक्षण खत्म हो जाते हैं.
वैक्सीनेशन कराना होता है जरूरी
एक्सपर्ट का कहना है कि टीकाकरण करना एक बेहतर विकल्प है. क्योंकि गम्बोरो रोग का वायरस बेहद ही टफ वायरस है. इसके संक्रमण को मुर्गी फार्म से दूर करने में काफी परेशानी आती है. क्लोरीन डिसइन्फैक्टैन्ट से ये वायरस अत्यधिक प्रभावित होते हैं. इसलिए टीकाकरण आवश्यक है. रोग की रोकथाम के लिये चार वैक्सीन स्ट्रेन माइल्ड, इन्टर मीडियेट, इन्वेसिव इन्टर मीडियेट (लेयर और ब्रायलर के लिये) एवं हॉट स्ट्रेन वैक्सीन का इस्तेमाल होता है. वैक्सीन का निर्णय पशु चिकित्सक की सलाह पर एरिया विशेष में रोग की स्थिति के आधार पर करना चाहिये.
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