नई दिल्ली. दुनियाभर में पशुओं की संख्या में भारत नंबर वन है. बावजूद इसके यहां प्रति पशु उत्पादकता बहुत कम है. डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि अगर प्रति पशु उत्पादन की क्षमता बढ़ जाए तो फिर इसका सीधा फायदा किसानों को और देश की अर्थव्यवस्था को होगा. इसके लिए जरूरी है कि प्रजनन में सुधार, आनुवंशिक सुधार, पशु पोषण में वृद्धि, पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल में सुधार, वैज्ञानिक प्रजनन को बढ़ावा दिया जाए. जिसके बाद भारत अपनी डेयरी उत्पादकता को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकता है. जिससे किसानों को भी फायदा होगा और देश में आर्थिक समृद्धि आएगी.
एक्सपर्ट का कहना है कि भारत में पशुधन देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को आजीविका प्रदान करता है और खाद्य सुरक्षा में योगदान देता है. पशुपालन दूध, मांस, ऊन और अन्य प्रोडक्ट सहित तमाम जरूरतों को पूरा करता है.
पौष्टिक हरे चारे की है कमी
ये फैक्ट है कि भारत में पशुधन की आबादी सबसे अधिक है और दूध उत्पादन में दुनिया में नंबर एक है. हाालांकि उत्पादकता के मामले में विशेष रूप से जुगाली करने वालों की उत्पादन क्षमता बेहद कम है. दरअसल, पूरे वर्ष उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे की कमी भी पशु की उत्पादकता को काफी हद तक प्रभावित करती है. इसके लिए चारे की उच्च उपज देने वाली किस्में और साइलेज बनाने, घास और फसल वेस्ट के लिए यूरिया-गुड़ उपचार जैसी तकनीकों को लागू करने की जरूरत है. क्योंकि बहुत कम चारा और असंतुलित पोषण एक और गंभीर मुद्दा है. कई डेयरी किसान उच्च गुणवत्ता वाला चारा नहीं खरीद नहीं पाते हैं और फसल के अवशेषों पर निर्भर रहते हैं. जिनमें आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है. इसके चलते भी उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है.
बीमारियों की वजह से भी पड़ता है असर
सबसे बड़ी चुनौती कई देशी नस्लों की कम आनुवंशिक क्षमता है. हालांकि भारत स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल कई देशी नस्लों का घर है, लेकिन उनकी दूध की पैदावार अधिक उपज देने वाली विदेशी नस्लों की तुलना में काफी कम है. उदाहरण के लिए, एक औसत भारतीय गाय प्रति ब्यात में 1,500-2,000 लीटर दूध का उत्पादन करती है, जबकि एक उच्च उपज देने वाली होल्स्टीन फ़्रीज़ियन गाय 7,000-8,000 लीटर का उत्पादन कर सकती है. वहीं रोग और परजीवी डेयरी उत्पादकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. मास्टिटिस, पैर और मुंह की बीमारी और प्रजनन संबंधी जैसी सामान्य बीमारियां दूध की उपज और डेयरी पशुओं की उत्पादकता को कम कर देती हैं. वहीं अंधाधुंध क्रॉस-ब्रीडिंग सहित अवैज्ञानिक प्रजनन प्रथाओं ने स्वदेशी नस्लों में आनुवंशिक गुणों को कमजोर कर दिया है. ये भी एक कारण है.
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