नई दिल्ली. मछली का खून ठंडा होता है और सर्दियों के दौरान पर्यावरण के तापमान में गिरावट के साथ इसका शरीर का तापमान गिर जाता है. इसलिए, तालाब में 6 फीट की अनुकूल पानी की गहराई बनाये रखी जानी चाहिए. ताकि मछली को मध्य और निचले जल क्षेत्रों में आरामदायक हाइबरनेटिंग जगह दिया जा सके. इसके अलावा सतह के पानी को गर्म रखने के लिए शाम के समय ट्यूबवेल का पानी डालना चाहिए, खासकर जब पानी का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है. ये कहना है कॉलेज ऑफ फिशरीज, गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान यूनिवर्सिटी की डीन डॉ. मीरा डी. अंसल का.
उन्होंने बताया कि सर्दियों के दौरान प्रकाश संश्लेषण (Light Reflection) गतिविधि कम हो जाती है, जो पानी में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा को कम करती है. खासकर ये लगातार कोहरे के दिनों में होता है. इसलिए, किसानों को या तो ताजा पानी डालकर या एरेटर का उपयोग करके तालाबों को हवादार करना चाहिए. खासकर भोर के समय और लगातार कोहरे के दिनों में पानी के पीएच की निगरानी करनी चाहिए. जो खराब प्रकाश संश्लेषण गतिविधि और बाद में कार्बन डाइऑक्साइड के संचय के कारण नुकसान पहुंचाने के स्तर तक गिर सकता है. यदि पानी का pH 7.0 से कम हो जाता है, तो दो किस्तों में 100 किलोग्राम/एकड़ चूना डालें.
खराब हो जाती है पानी की क्वालिटी
डॉ. मीरा का कहना है कि आसपास के पेड़ों (विशेष रूप से पर्णपाती पेड़ों) को काटें, ताकि तालाब पर सीधी धूप पड़ सके और पत्तियां तालाब में न गिरें और पानी की गुणवत्ता खराब न हो. जैसे-जैसे तापमान में गिरावट के साथ मछलियों की गतिविधि और फीड का सेवन कम होता जाता है, मछलियों को धीरे-धीरे 25-75 फीसद तक खिलाना कम करें और आखिरी में तब बंद करें जब पानी का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाए. कई बार मछलियां अतिरिक्त फीड बिना खाए रह जाती है. तालाब के तल पर जमा हो जाती है. और पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है.
तालाब में क्या डालना चाहिए पढ़ें यहां
इसके अलावा, तालाब में जैविक खाद डालना कम करें. या बंद करें, जो कम माइक्रोबियल गतिविधि के कारण जैविक भार को बढ़ाता है. अकार्बनिक उर्वरकों (यूरिया/डीएपी) का इस्तेमाल की भी एक्सपर्ट के बताने पर ही करें. क्योंकि ये शैवाल के खिलने को बढ़ावा दे सकते हैं और पानी में सूरज की रौशनी के प्रवेश को रोक सकते हैं. शैवालों के खिलने को 50-100 किग्रा एकड़ की दर से चूना (केवल तभी जब पानी का पीएच 8.5 से कम हो) या 2-3 किग्रा किलोग्राम एकड़ की दर से पोटेशियम परमैंगनेट (KMnO4) के प्रयोग से नियंत्रित किया जा सकता है.
ठंड में इन बीमारियों का रहता है खतरा
सर्दियों के दौरान, मछलियों में कई फफूंद, बैक्टीरिया और कीड़ों से होने वाली बीमारी जैसे फिन रॉट, गिल रॉट, अल्सर और आर्गुलोसिस दिखाई दे सकते हैं. फिन/गिल रॉट और अल्सर को रोकने के लिए 400 मिली/एकड़ की दर से CIFAX, 1-2 किग्रा/एकड़ की दर से KMnO4, 50-100 किग्रा/एकड़ की दर से चूना या 500 ग्राम/एकड़ की दर से हल्दी पाउडर का प्रयोग करें. 50-100 किग्रा प्रति एकड़ की दर से नमक का प्रयोग भी परजीवियों और फिन/गिल रॉट के खिलाफ प्रभावी रहता है. जबकि 15 मिली प्रति एकड़ की दर से डेल्टामेथ्रिन (एक पखवाड़े में बूस्टर खुराक के साथ) आर्गुलस परजीवी को नियंत्रित करता है.
तो निकाल लें मछलियां
डीन डॉ. मीरा डी. अंसल के मुताबिक शिकारी पक्षियों को तालाब से दूर रखने के लिए रिफ़्लेक्टिंग टेप, नायलॉन धागा, जाल कवर, ध्वनि या पक्षी डराने वाले उपकरण का इस्तेमाल करें. बिक्री होने लायक कार्प मछली (500 ग्राम से अधिक) को सर्दियों (नवंबर से फरवरी) के दौरान बेच देना चाहिए ताकि मार्च व अप्रैल में अगली फसल के स्टोरेज के लिए पर्याप्त जगह बनाई जा सके. हालांकि, मृत्यु दर के कारण किसी भी अप्रत्याशित स्टॉक हानि को रोकने के लिए सर्दियों के प्रति संवेदनशील पंगास कैटफिश की पूरी कटाई 20 नवंबर से पहले की जानी चाहिए.
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