नई दिल्ली. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर ज्यादा प्रोडक्शन देने वाले भेड़ के बच्चे चाहते हैं तो इसके लिए नर भेड़ों की खूबियों का पता होना चाहिए. जब उनके अंदर खूबी होगी तो फिर उसी की वजह से बेहतर नस्ल का उत्पादन होगा. इसलिए जन्म से ही नर मेमनों की परख करना बेहद ही जरूरी होता है. इन मेमनों में किसी प्रकार का नस्ल दोष आंखों के गिर्द चक्कर व कानों के नीचे का हिस्सा भूरा होने के अलावा कहीं भी काले या भूरे रंग की ऊन, तोतानुमा जबड़ा या दांतों से संबंधित अन्य कोई बीमारी, कुबड़ापन, लंगड़ापन, अंधापन व बौनापन न हो.
एक्सपर्ट के मुताबिक छह माह की उम्र पर परख कर लें. मेमने का जन्म के समय भार तथा छह माह की आयु पर भार के आधार पर ही मेमने का चयन होना चाहिए. इन चीजों पर खरे उतरने वाले मेमनों को ही अगली पीढ़ी का जनक बनने का हक है.
शरीरिक बनावट भी देखें
नर भेड़ की शारीरिक बनावट की परख भी करना बेहद ही जरूरी होता है. कई मेमने बताए गई बातों पर खरें नहीं उतरते हैं तो उनको फौरन ही अलग कर लेना चाहिए. वहीं उच्च श्रेणी वालों का चयन कर उनकी आकर्षकता पर ध्यान देना चाहिए. जिनमें चौड़ा व गहरा वक्ष और पेट, मांसल पुट़ठे, पीठ व कठि मजबूज टांगें, मुलायम त्वचा, चमकीली बड़ी आंखें व चौड़े नथुने, थूथन, जबड़ा व कपोल, सुडोल, बदन व लम्बा शरीर होना शामिल है.
टेस्टीकल्स की जांच कराएं
नर भेड़ के प्रजनन अंगों व क्षमता की परख करना चाहिए. सभी गुण होने के बाद भी यदि नर भेड़ के टेस्टीकल्स व सीमेन में दोष हो तो नर भेड़ में कुछ भी नहीं है. इसलिए नर भेड़ों की इस लिहाज से जांच बेहद ही जरूरी है. टेस्टीकल्स समानान्तर व विकसित हों, ऋतुकाल में रतिवाली भेड़ों पर चढ़ने में तीव्रता, मर्दानगी व काबू करने की क्षमता और झटका देकर सीमेन गिराने की क्षमता अच्छी हो. ऐसे नर भेड़ों से भेड़ों में गर्भ धारण करने की क्षमता बढ़ती है.
न कराएं सबंधियों से मिलान
रेवड़ में नर भेड़ों के प्रजनन काल की बात की जाए तो हर दो वर्ष के बाद नर भेड़ बदल लें, ताकि रेवड़ में आखिरी तक प्रजनन से बचा जा सके. नर भेड़ के निकट संबंधियों से मिलान का बचाव करना चाहिए. यदि नर भेड़ें रेवड़ में जन्मे मेमनों में से ही एक है तो फिर उसके निकट संबंधियों जैसे मां, बहन, बेटी व चचेरी बहन, मौसी आदि से मिलान नहीं कराना चाहिए. जब तक कि विशुद्ध नस्ल उत्पादन व एक विशिष्ठ रेखित उपनस्ल पैदा करना उद्देश्य न हो.
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