नई दिल्ली. मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है. वहीं किसान भी तेजी के साथ मछली पालन कर रहे हैं और इससे फायदा उठा रहे हैं. जिस तरह से आम इंसानों से लेकर पशुओं तक को विशेष केयर की जरूरत होती है ताकि बीमारी से बचाया जा सके. उसी तरह से मछली को भी होती है. मछली को कई तरह रोग होते हैं. जिससे मत्स्य पालक को नुकसान उठाना पड़ता है. हमने अपने पिछले आर्टिकल में हमने बैक्टीरियल डिसीज के बारे में आपको बताया था. यहां हम परजीवी जनित रोग के बारे में आपको बता रहे हैं कि ये बीमारी क्यों होती है, इसके कारण क्या हैं आदि.
एक्सपर्ट के मुताबिक परजीवी जनित रोग, कार्प मछलियों में एक प्रमुख समस्या है और ये मत्स्य पालकों आर्थिक नुकसान के लिए अन्य रोगों की तुलना में अत्यधिक जिम्मेदार हैं. आर्गुलस परजीवी (मछलियों की जूं द्वारा उत्पन्न अर्गुलोसिस रोग, कार्प मछली पालन में एक प्रमुख बाह्य परजीवी रोगों में एक है. इस परजीवी के कारण आर्थिक नुकसान केन्द्रीय मीठाजल जीवपालन अनुसंधान संस्थान, भुवनेश्वर के वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2014 में आंकलन किया गया था कि इस परजीवी द्वारा संक्रमण के कारण शरीर वृद्धि में कमी, आहार रूपांतरण अनुपात में कमी, द्वितीयक संक्रमण तथा मछलियों की मृत्यु प्रमुखता से पाई जाती है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
एक्सपर्ट के मुताबिक इस रोग के संकेतिक लक्षण मुख्यतः अनियमित विचरण, त्वचा में खरोंच, भूख में कमी एवं शरीर के ठोस सतह पर रगड़ना शामिल है. आमतौर पर मछली के शरीर पर लाल धब्बे अथवा रक्तस्राव क्षति देखने को आसानी से मिलती है. एक अन्य परजीवी लर्निया (एंकर वर्म) से होने वाला संक्रमण कार्प मछलियों में भी प्रचलित समस्या है. इस रोग के संकेतिक लक्षण मुख्य रूप से त्वचा पर स्थानीयकृत लालपन, शरीर पर सूजन, श्वसन संबंधी समस्याएं तथा आलस्य शामिल हैं. इन बाहरी परजीवियों को शरीर की त्वचा पर खुली आंखों से देखा जा सकता है. ये परजीवी सेकेंडरी संक्रमण का एक प्रमुख कारण हो सकता है एवं मत्स्य पालकों के पर्याप्त नुकसान पहुंचा सकता है.
खराब गुणवत्ता वाले पानी से होती है बीमारी
इसके अलावा, डैक्टाइलोगायरस (गलफड़ा कृमि) तथा गायरोडैक्टाइलस (त्वचा कृमि) का संक्रमण खराब जलीय गुणवत्ता वाले तालाबो में आम तौर पर देखा जा सकता है जो मत्स्य पालको को व्यापक नुकसान पहुंचा सकता हैं. इस रोग के संकेतिक लक्षणों में बदरंग गलफड़े, संक्रमित भाग की कोशिकाओं में घाव एवं अत्यधिक श्लेष्मा श्राव देखा जा सकता है. इसके अलावा, कुछ प्रोटोजोअन सिलियेट्स (इक्थायोपथिरियस, ट्राइकोडिना) एवं फ्लैजलैट्स (इक्थायोबोडो) भी मछलियों की प्रचलित बाह्य परजीवी हैं. जब जल की गुणवत्ता खराब होती है तब ये प्रोटोजोअन बाह्य परजीवी मछलियों की मृत्यु से जुड़े होते हैं. प्रोटोजोअन परजीवी के होने के संकेतिक लक्षणों में भारीर पर अत्यधिक भलेश्म श्राव देखा जा सकता है.
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