नई दिल्ली. बारिश के इस मौसम में पशुओं को कई खतरनाक बीमारियों का खतरा होता है. इसी में से एक बीमारी रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया (एचएस) कही जाती है. ये बीमारी मवेशियों और भैंस की एक प्रमुख बीमारी है. इस बीमारी से एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिणी यूरोप के क्षेत्रों में पशु बीमार होते हैं. इसका खतरा देश में भी है. भारत के 133 शहरों में इसका खतरा बताया जा रहा है. ज्यादातर भैंस को अपनी चपेट में लेने वाली इस बीमारी से सतर्क रहने की जरूरत है. पशुओं को लेकर काम करने वाली निविदा संस्था की ओर से ये अलर्ट जारी किया गया है. साथ ही एक्सपर्ट का कहना है बारिश के मौसम में पशुओं को लेकर ज्यादा एहतियात की जानी चाहिए.
जुलाई के महीने में यह बीमारी देश के 64 शहरों में पशुओं को अपना निशाना बना सकती है. जिसमें झारखंड के 16 जिले, कर्नाटक के 11 जिले और केरल का 6 जिला प्रभावित हो सकते हैं. वहीं अगस्त के महीने में इस बीमारी का प्रकोप देश के 69 शहरों में देखने को मिल सकता है. जहां सबसे ज्यादा झारखंड के 13 और कर्नाटक के 13 शहर में यह बीमारी प्रसार हो होता दिखाई दे रहा है. वहीं मध्य प्रदेश के 11 जिलों में इसका असर दिखने की आशंका जाहिर की जा रही है. राजस्थान के भी 5 जिलों में इसका असर दिखाई दे सकता है. वेस्ट बंगाल के दो शहरों में पशुओं को ये बीमारी अपना निशाना बना सकता है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण
एक्सपर्ट का कहना है कि ये बीमारी बड़ी तीव्र मानी जाती है. 3 दिनों तक और कभी-कभी 5 दिनों तक इसका असर पशुओं पर दिखाई देता है. इस बीमारी में पशुओं को 104 से-106 फार्रेनहाइट तक बुखार हो सकता है. पशुओं को इससे बेहद ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वहीं पशुओं बहुत ही उदास रहने लग जाते हैं. उनके अंदर बेचैनी दिखाई देती है. इसके अलावा हिलने-डुलने से वो कतराते रहते हैं. ज्यादा लार आना, आंसू आना, नाक से स्राव आना जो सीरस के रूप में शुरू होता है और म्यूकोप्यूरुलेंट में बदल जाता है.
कैसे कर सकते हैं इलाज
एक्सपर्ट के मुताबिक बीमारी की शुरुआत में ही एंटीमाइक्रोबियल दवाएं दी जाएं तो रक्तस्रावी सेप्टीसीमिया के खिलाफ प्रभावी होती हैं. क्योंकि एचएस तेजी से बढ़ता है. इसलिए इलाज ज्यादा कारगर साबित नहीं होता है. इसके प्रकोप के दौरान, बुखार से पीड़ित किसी भी रोगी को जल्द से जल्द ठीक करने के लिए एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के साथ इलाज किया जाना चाहिए. एचएस के इलाज के लिए तमाम सल्फोनामाइड्स, टेट्रासाइक्लिन, पेनिसिलिन, जेंटामाइसिन, कैनामाइसिन, सेफ्टियोफुर, एनरोफ्लोक्सासिन, टिल्मिकोसिन और क्लोरैम्फेनिकॉल का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया है.
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