नई दिल्ली. हरियाणा की मिठाई घेवर दुनिभार में धूम मचाई है. जबकि सावन के महीने में इसकी खासी डिमांड होती है. घेवर तकरीबन हर हलवाई की दुकान में मिलने वाली मिठाई में एक है. ये कहना गलत नहीं होगा कि बाजार में जिधर नजर डालें वहां घेवर नजर आएगी. सादा घेरव और मलाई वाला घेवर बहुत पसंद किया जाता है. हालांकि इसे लेकर कई राज्य और शहर इस बात का दावा करते हैं कि ये उनके यहां की मिठाई है. राजस्थान तो यूपी ब्रज क्षेत्र इसे अपनी मिठाई बताते हैं. जबकि दूसरी ओर विदेशों जिस घेवर की धूम है वो हरियाणा मेड.
हरियााणवी घेवर अमेरिका-आस्ट्रेलिया, नेपाल और कनाडा से लेकर केरल, तमिलनाडु, गोवा और जम्मू-कश्मीर तक रोहतक के लोगों की जुबां पर है. वैसे तो दूसरे शहरों में घेवर बनने की शुरुआत सावन होती है, लेकिन रोहतक में इसकी शुरुआत जून से हो जाती है. ताकि एक्सपोर्ट की जा सके. वहीं आगरा, यूपी से आने वाले घेवर बनाने वाले कारीगर रोहतक और उसके आसपास के इलाकों में नजर आते हैं.
देखा जाए तो घेवर ज्यादा सावन में ही खाई जाती है. इसका इस्तेमाल स्वाद और हेल्थ के नजरिए से होता है लेकिन पंजाब, राजस्थान समेत कई दूसरी जगहों पर घेवर साल के 12 महीने बनती है. वहीं तीज पर बेटी की ससुराल भी ये भेजी जाती है तो रक्षाबंधन पर बहन भाई के हाथ में राखी बांधकर घेवर से उसका मुंह मीठा कराती है.
जबकि रोहतक में गुलाब रेवड़ी के नाम से मशहूर घेवर कारोबारी सुधीर गुप्ता कहते हैं कि रोहतक में पनीर घेवर, मलाई घेवर, सफेद घेवर, केसर घेवर, केसर मलाई, मिल्क घेवर, खस घेवर, चाकलेट, आरेंज आदि को बनाया जाता है. यहां का बना घेवर दिल्ली, हरियाणा के ज्यादातर शहरों, मुंबई, बंगलौर, कोलकाता, गुजरात में भी सप्लाई होता है. रोहतक के ही कई ऐसे दुकानदार हैं जो बाहरी देशों में भी घेवर सप्लाई कर देते हैं.
हरियाणवी घेवर कारोबारियों की मानें तो रोहतक में घेवर बनाने और बेचने वालों की 90 से 100 तक छोटी-बड़ी दुकानें हैं. इसमें 10-12 बड़ी दुकानें तो ऐसी हैं जिन्होंने देश के साथ ही विदेशों में भी घेवर को भेजकर नाम कमाया है. कारोबारियों का अनुमान है कि हर साल सीजन के दौरान अकेले रोहतक में ही 450 से 500 टन तक घेवर तैयार होकर बिक जाता है.
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